Book Title: Amari Ghoshnano Dastavej
Author(s): Sensuri, Shilchandrasuri
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust

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Page 15
________________ ६०. पुजीजी क्रिपाकर पधारजोः महोउपाध्य श्रीसोमविजै पीण नेडा छ पुजीज लबधी लषी छै वि चारी भला जाण तम लीषजो पुजी लीष तिम परमाण लेष प्रसाद वैगा मकलजो ६२. ईभरमावादः पं. श्रीः माहानंद ठण ३ छे दीलई जेठ ठण २ छै: पारी: गणस रतनई ठण २ पहली चै ६३. मासः पेरोजावादः गणी षीमानंद रह था विजामतका आचारिज रह माट: ही वकतै ते षाली ६४. पडः हीवं चैमास पेरोजावादका षेतनी चीता करजोः पहलकैतई सातप रह था तै सरबेमड राषी ६५. हीवैभीपु षेत षाली न रह तीम करजो. स्रावीकानी वंदणा विनवी छै ते प्रीछजो सही जाणजो. सं. विमलादे बाः साहीजाइ बाः मीरघ बाः जादव पारसीसहमनी वंदण अवधारजो कपूरदे बाई बाः लाछी बाः मोतां राषयादी बाः जावडइ १साः ताराचंद साः षेताचंद साः मोहील मणीकदे बाः कवर बाः सीरदे बा: भगत १साः छीतु साः कासी साः वेणीदास वालादे वहुः मनोरथदे बाः गारवदे बाः राज साः मणकचंद १ साः सागर साः भैरू १साः भोवाल साः ढोला वहु केसरइ बाः दोली बाः गेरादे साः डगर ६६. पुजीजी प्रतिस्टाउपरी वैग पधारजो ईहना संघनु उतकंठा घणी छै एकवार तुमारा चरण ६७. देष समसत संघ संतोष पाम नहीतर महोउपाध्यनु आदेस दजो जीणसासणनी सो ६८. भा होई तीम करजो घण स्य लीषीअ पुजीजी ईहनी परचीता तुमन छ ते प्रीछजो. ६९. संवतु १६६७ मीती काती सुदी २ सुभदीने सोमवारे सुभं भवतुः लीः सीकहसासुत વાંચી શકાય તેવું સંસ્કરણ || समस्ति श्रीचिन्तामणिपार्श्वजिनं प्रणम्य, श्रीदेवकपाटण महानगर शुभस्थाने, पूज्य आराध्य, महा उत्तमोत्तम, चारित्रपात्र-चूडामणि, कुमतअंधकारनभोमणि, कलिकालगौतमअवतार, सरस्वतीकंठआभरण, चउदविद्यानिधान, एकविध असंजमना टालणहार, दुविध धर्मप्ररूपक, त्रणतत्त्वना जाण, चार कषायना जीपक, पंच महाव्रतना पालणहार, छ कायना पीतर, सात भयना टालणहार, आठ मदना जीपक, नववाडविशुद्ध ब्रह्मचर्यना पालणहार, दशविध श्रमणधर्मप्रतिपालक, अगीआर अंग बार उपांगना जाण, तेर काठीआना जीपक, चउदभेद जीवना प्ररूपक, पंदर परमाधामीना भेदना जाण, सोलकलासंपूर्णचन्द्रवदन. सत्तरभेद संजमना प्रतिपालक, अढारसहस सीलंगरथना धारक, ओगणीस ज्ञाताधरमना प्ररूपक, वीस असमाधिस्थाने रहित, एकवीस सबलना वारक, बावीस परीसहना जीपक, तेवीस सूयगडांगअध्ययनना जाण, चोवीस तीर्थंकरनी आज्ञाना प्रतिपालक, पंचवीस भावनाना भावक, छवीस दशाकल्पव्यवहारना जाण, सत्तावीस साधुगुणना उपदेशक, अठावीस आचारकल्पना जाण, ओगणत्रीस Jain Education International For Private & Onal Use Only www.jainelibrary.org

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