Book Title: Amari Ghoshnano Dastavej
Author(s): Sensuri, Shilchandrasuri
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust

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Page 14
________________ ३६. सं. समीदास सं. लीलापती सं. कलु सं. वीरजी सं. कपुरा सादुल: साः कल्याण सुगंधी दरगह सुगंधी ३७. साः कचरा मुहणेत साः पदा मुहणैत साः जेसीध मुहर्णतः साः जादुः साः ईसर साः भाउः सः गोवल ३८. साः सोमसीः साः पोमसी: साः वरधमान साः राउ: साः धनराज सं. नीहाल: साः रूडाः साः भोवाल सोनी: सकतन साः रतना साः संसारूः साः वाध साः जावड भावड साः डगर वैद साः गगा साः डूंगरः साः सु ४०. रताणः साः जैकरणः आदेसकारी दवस वंदणाः सीकाहसाकावराघवनी अवधारजोः समस४१. त संघनी द्वादशवंदणा अवधारजो, इह श्रीपुजीजीनै प्रसाद कुसल षेम छै. पुजीजीना ४२. कुसल षेमना सही समाचार लीषवा, जीत सेवकनै परमसंतोष उपजैः अपर इह श्री ४३. पजुसण प्रव नीरावादपणे हुआ छै अमारी दीन १२ पजुसरणनी विसेष सावदेसः पुरवदेस ४४. तथा ढीलमंडल मेवातमंडल रीणथंभैरगढदेसी वीजा ही धणै देसी अमारी वरती छै तैः संतोष मानजो ४५. श्री सत्तरभेदी पुजा १५ श्री जहगीर पातीसाह तषत पेठ पुढे ये अपुरव करणी हुई छै भ४६. गवनजीनै प्रसाद श्रीतपागच्छनी उनित वीसेष हुई छै. श्रीपातिसाहजी फुरमान २ करी द ४७. नाः तेश्री पजुसण आव श्रीजीनु रमदासजी आग हुई गुदरण हुकम दीआ ढंढोरा दीवाया ४८. पारीउरवार सारै दीन १२ अमारी वरताई जीण वेल श्रीजी हुकम दीना तीण वेल दरीषन ४९. जुड था श्रीजी झरोषे बैठा था राजा रामदास आगे था तीण पाछै फरमान लीष: पं: विवेकर्ह ५०. तिण पाछे पंः उदेह थाः पछै अमारी आसरी विनती की श्रीपातीसाहजी हुकम दीना ५१. ततकालीः तीण वेलाः जीसा दरीषना जुडसुतीण समना ये लेष माह सरव लीष छै ५२. उसता सालीवहण पातिसाही चित्तकार छ तेण तीण समै देष छै ईसाही ईण चि ५३. त्तमाहे भाव राष छै सु लेष देष प्रीछजो उसता सालीवहण वंदणा विनवी छै प्रछजो. ५४. ईह श्रीः पजुसण श्रीसत्तरभेद पुजा १५ सनाथदीन ६१ तपमासषमण १|| मासषम५५. ण १। पाषषमण तथा अठाई तथा दवदसम दसम अठम बीजा ही तप घणा हुआ छै ५६. छमछरीपोसह ९०१ सहमीवछल साः वंदीदासकैः चैमासा पाषी असटमी सदी सह ५७. मीवछल चाल छै पुजीजीका प्रसादथी अपरं ईह श्रीजिनप्रासाद नवाः संः चंदु करय छै ५८. प्रतीमा पीण माहा सुंदर हुई छै षा(?)णिनु पीणा प्रतिष्ठाना घणाई छै श्रीपुजीजी आवे तथा ५९. श्री आचारिजजी पधारतै जीणससणीना घणा उछाहं होइ सारसंघना मनोरथ पहचै Jain Education International For Private & Csonal Use Only www.jainelibrary.org

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