Book Title: Alankarsarvasva Author(s): Girijaprasad Dvivedi Publisher: Pandurang JavajiPage 19
________________ ग्राहं तु-कालिदासादयस्तथा आनन्दवर्धन-भामहा-रुद्रट-राजशेखरादयो लक्ष्यभूता एव मर्यन्ते / अस्मिन् प्रबन्धे चत्वार उन्मेषाः, तेषु प्रथम-द्वितीयौ मुद्रितौ, शिष्टयोर्द्वयोश्च मुद्रणार्थ मद्रासनगरपरिसरवर्ती कश्चन पण्डितो यतत इत्यनुश्रूयते / अस्यैव 'संरम्भः करिकीटमेघ--' इति पद्यं विधेयाविमर्शदुष्टतया व्यक्तिविवेककारेण महत्या आरभव्या दूषितम् / / महिमभट्टः। अयं श्मामलशिष्यः श्रीधरसूनू राजानकमहिमाचार्यों लोचनकारात् किंचिदेवोत्तरस्मिन् निस्ताब्दस्य दशमशतके कश्मीरेषु बभूव / खिस्तैकादशशतकस्थितेन व्यासदासापरनामकेन श्रीक्षेमेन्द्राचार्येणौचित्यविचारचर्चायां 'न तु यथा श्यामलस्य' सुवृत्ततिलके च 'विपरीता यथा भदृश्यामलस्य' 'यथा भट्टश्यामलस्य' इत्येवमादिना मर्यमाणः स एवायं श्यामलोऽस्य गुरुपदवीमारूढ इति तर्कयामः / एतदप्यस्य दशमशतकस्थितिं लक्षयति / M. T. नरसिंह अय्याङ्गार पण्डितोऽपि स्वीये व्यक्तिविवेकप्रस्तावे प्रकृतमेव प्रमाणयति We know that Anandavardhan lived in the later half of the 9th century at the time of Avantivarman (855-884 A. D.)Bhatta Nayak was a contemporary of Shankar Varman (884-902 A. D.) and Abhinavagupta 'Padacharya of Lochankar flourished about 993-1015 A. P.( See Duff's Chronology of India P. 102 ) Thus we may safely conclude that Mahim Bhatta cannot be earliar than 1000 A.D." अयं महिमा ध्वनिनिरासाय विमर्शत्रयात्मकं व्यक्तिविवेकाख्यं ध्वनिग्रन्थं निरमात् / अस्मिन् सर्वोऽपि ध्वनिप्रपञ्चो महताभिनिवेशेनानुमानशरीरेऽन्तर्भावितः / अनुमानाद् व्यङ्ग्यप्रतीति निरूपयतोऽस्यैव मतं मम्मटेन नामानिदेशेन पञ्चमोल्लासे दूषितम् / हेमचन्द्रोऽप्यात्मनः काव्यानुशासने व्यक्तिविवेकमुद्धरनामनिर्देशं न कृतवान् / व्यक्तिविवेकस्य व्याख्याता च रुय्यक एवेति 1 काव्यमालामुद्रितायां पृ. 125 द्रष्टव्यम् / 2 काव्यमालामुद्रिते पृ. 2, 44, 55 द्रष्टव्यम् / RSee the Journal of the Rayal Asiatic Society, January 1908.Page Navigation
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