Book Title: Alankarik Drushti se Uttaradhyayan Sutra Ek Chintan
Author(s): Prakashchandramuni
Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf

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Page 6
________________ Jain Education International चतुर्थखण्ड / १०० गाथा २०-२१-२२ - इन गाथाओं में भी रूपक अलंकार दृष्टव्य है-श्रद्धा को नगर, तप और संयम को अगंला ( सांकल), क्षमा को प्राकार ( परकोटा), बाई और शतघ्नी रूप में बताया है । बांधकर; -- पराक्रम को धनुष, ईर्ष्या समिति उसकी डोर धृति को उसकी मूठ तथा सत्य से 1 -तप के बाणों में युक्त धनुष से कर्मरूपी कवच को भेद कर प्रन्तर्युद्ध का विजेता मुनि संसार से मुक्त होता है। - इन गाथाओं यमक, अनुप्रास अलंकार भी है । गाया ३६ – इस गाया में कहा गया है कि '५ इन्द्रियाँ, ४ कषाय और १० वी मन ये दुर्जेय हैं। एक अपने आपको जीत लेने पर सभी जीत लिये जाते हैं ।' पहले इन्हें दुर्जेय बताकर जीतना भी बताया गया है अतः विरोधाभास अलंकार तथा अनुप्रास अलंकार भी है । गाथा ४८ -' इच्छा उ आगाससमा' - इच्छा आकाश के समान अनंत है। इसमें उपमा, तथा गाथा में यमक और अनुप्रास अलंकार है । गाथा ५३ - 'सल्लं कामा, विसं कामा, कामा आसोविसोवमा । कामे भोए पत्येभाणा, अकामा जंति दोग्यहं ॥ इसमें काम को शल्य, विष और आशीविष सर्प से उपमित किया गया है अतः रूपक तथा यमक और विरोधाभास अलंकार है । अध्ययन १० – गाया १ 'दुमपत्तए पंडुपए जहा.... एवं मणुयाणं जीविमं । जैसे समय बीतने पर वृक्ष का सूखा हुआ सफेद पत्ता गिर जाता है, वैसे ही मनुष्य का जीवन है । इसमें उदाहरण अलंकार है । गाथा २ - ' कुसग्गे जह ओस बिंदुए है उसी तरह मनुष्य का जीवन भी क्षणिक है । कुशाग्र पर टिके प्रसबिंदु की स्थिति क्षणिक उदाहरण अलंकार । गाथा २८ वीच्छिन्द सिणेहमप्यणो कुमुयं व सारइयं पाणियं - जैसे शरत्कालिक मुमुद पानी से लिप्त नहीं होता है उसी प्रकार तुम भी सभी स्नेह (लिप्तता) को त्याग दो । उदाहरण तथा गाथा में यमक और अनुप्रास है । गाथा २९ - ' मा वन्तं पुणो वि आइए' - वमन किए भोगों को पुनः स्वीकार मत कर। इसमें भोगों को वमन बताया गया है अतः रूपकालंकार है तथा 'वन्तं' शब्द में श्लेष [वन्तं वमन और भोगवमन ] । गाथा ३२ -- ' अवसोहिय कष्टगायहं ओइण्णो सि पहं महालय" इस गाथा में कंटकाकीर्ण पथ एवं राजपथ की बात कही गयी है और इस बात का लक्ष्य है - संसार का मार्ग (कंटकाकीर्ण) तथा श्रात्मा का मार्ग ( राज पथ ) । अतः अन्योक्ति अलंकार है । गाथा ३४ - इस गाथा में संसार को सागर से उपमित किया है अतः रूपक तथा अनुप्रास अलंकार है । अध्ययन ११ श्लेष अलंकार मिलते हैं । -गाथा १५ से ३० – इन गाथाओं में उदाहरण, उपमा अनुप्रास तथा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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