Book Title: Akash ki Avadharna Agamo ke Vishesh Sandarbh me Author(s): Vijay Kumar Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 6
________________ --यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रन्थ - आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्म - 13. चउविहा ओगाहणा पण्णत्ता, तं जहा-दव्वोगाहणा, भगवतीवृत्ति 1/310 खेत्तोगाहणा, कालोगाहणा, भावोगाहणा। वही 4/1/188 24. जैन धर्म-दर्शन, डा. मोहनलाल मेहता, पृ. 214-215 14. गोयमा। दुविहे आगासे पण्णत्ते, तंजहा-लोयाकासे य 25. भगवती 13/4. उदधत-श्रीदेवेन्द्रमनि शास्त्री. जैन-दर्शन अलोयागासे या वही 2/10/10 / में आकाश तत्त्व: एक अध्ययन, श्रमणोपासक, अप्रैल 15. आयातचक्खू लोगविपस्सी लोगस्स अहोभागं जाणति उ8 . 78, पृ. 16 ___भागं जाणति, तिरियं भागं जाणति। आचारांगसूत्र 1/2/5/91 26. भगवई, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 135 16. जैन-दर्शन का आदिकाल, पं. दलसुखभाई मालवणिया, 27. तंह प्रवाहणो जैवलिर् उचाव-अस्य लोकस्य का गतिर् पृ. 241-242 इत्य आकाश इति होवाच। सर्वाणि ह वा इमानि भूतान्या 17. भगवई, पृ. 134 काशाद् एवं समुत्पद्यन्ते, आकाशं प्रत्यस्तम् यान्त्या काशोह्य 18. अलोए णं भंते। किखंठिए पण्णत्ते? गोयमा झसिरगोलसंढिए एवेभ्यो ज्यायान्, आकाशः परायणम्। छान्दोग्योपनिषद् पण्णत्ते / / भगवती 11/99 1/818,1/9/1 19. भारतीय सृष्टिविद्या, डा. प्रकाश, पृ-.१० 28. रोहा! लोयंते य अलोययंते य पुटिव पेते, पच्छा पेते-दो वेते सासयाभावा, अणाणुपुव्वी एसा रोहा! भगवई, आचार्य 20. व्याख्याप्रज्ञप्ति में आकाश के निम्नलिखित पर्यायवाची महाप्रज्ञ, 1/6/296 बताए गए हैं- आकाश, आकाशास्तिकाय, गगन, नभ, सम, विषम,खह, विहायस, वीचि, विवर, अम्बर, अम्बरस, 29. जैनदर्शन, पं. महेन्द्रकुमार जैन, तृतीय संस्करण, पृ. 133 छिद्र, शुषिर, मार्ग, विमुख, अर्द, व्यर्द, आधार, व्योम, 30. सूर्यपरिस्पन्दयुक्ताकाशस्यैव (सूर्यपरिस्पन्दादिभिराकाशस्यैव) भाजन अंतरिक्ष श्याम अवकाशान्तर. अगम. स्फटिक प्राच्यादिव्यवहारोपपत्तौ दिगिति न पृथग्द्रव्यकल्पनम। और अनन्त। व्या. प्र. 2/6 यतीन्द्रमतदीपिका, व्याख्याकार, आचार्य शिवप्रप्रसाद द्विवेदी, पृ. 78-79 / 21. रत्नशर्कराबालुकापङ्कधूमतमोमहातमःप्रभा भूमयो घनााम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः। सप्ताधोऽधः पृथुतराः। तत्त्वार्थ- 31. आचारांगनियुक्ति, 42/44, उद्धृत, श्री देवेन्द्रमुनिशास्त्री, सूत्र 3/1 जैनदर्शन में आकाश तत्त्व, श्रमणोपासक, अप्रैल 1978, पृ. 19 22. अट्ठविद्या लोगट्ठिती पण्णत्ता, तं जहा-आगसपतिट्टिते वाते, वातपट्ठिते उदही (उदधिपतिट्ठिता पुढवी, पुढवीपतिट्ठिता 32. जैन धर्म-दर्शन, डा. मोहनलाल मेहता, पृ. 218 तसा थावरा पाणा, अजीवा जीवपतिट्ठिता) जीवा 33. आगासथिग्गले णं भंते! किणा फुडे? कइहिं वा काएहिं कम्मपतिट्टिता, अजीवा जीवसंगहीता, जीवा कम्मसंगहीता। फुडे? पण्णवणा 15/53 स्थानाङ्गसूत्र 8/14, भगवई 1.6.310 34. अलोकाकाशस्य देशत्वं लोकालोकरूपाकाशद्रव्यस्य 23. आकाशं तु स्वप्रतिष्ठितमेवेति न तत्प्रतिष्ठाचिन्ता कृतेति। भागरूपत्वात्। भगवतीवृत्ति, 2/140 D:\GYANMAMAKHANDS.PMS Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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