Book Title: Ahmedabad Yuddh ke Jain Yoddha Author(s): Vikramsinh Gundoj Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 5
________________ अहमदाबाद युद्ध के जैन योद्धा 133 चिढ़े चंडिका पुत्र यू वरणेस / कंठीरव पौरस जे-करणेस / / उरै असि आरण वीर अरोध / जुडै सिंघवी खग झाटक 'जोध' / / बिढे महता जुधि और वहास / दिये खग झाटक गोकलदास / / वैरीहर बाढ़त वीजल वाह / गोपाल कराल करै गजगाह / / इसके अतिरिक्त उदयचन्द भण्डारी, बाधचन्द भण्डारी, पेमचन्द भण्डारी व उसका पुत्र, थानचंद दीपचंद, माईदास भण्डारी, रणछोड़दास, खुशालचंद, मुहणोत सूरतराम आदि जैन योद्धाओं ने इस ऐतिहासिक युद्ध में बहादुरी से शत्रु सेना का सामना किया / ' इन वीरों के नाम तो कविराजा करणीदान ने अपने ग्रन्थ सूरजप्रकास में गिनाये हैं। इसके अतिरिक्त भी निश्चित रूप से ऐसे अनेक अनाम जैन योद्धा रहे होंगे जिन्होंने इस युद्ध में भाग लिया होगा परन्तु आज उनके नामोल्लेख या अन्य पुष्ट प्रमाणों के अभाव में केवल अनुमान का ही आश्रय लेकर संतोष करना पड़ रहा है। उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट हो जाता है कि महावीर स्वामी के अहिंसा परमोधर्मः के सिद्धान्त का कठोरता से पालन करने वाले, कोमल एवं शांत विचार के अनुयायी जैन सम्प्रदाय के लोग आवश्यकता पड़ने पर शत्रु का मुकाबला करने के लिए मोर्चा संभालने का कार्य भी सहर्ष स्वीकार करते थे। युद्ध की विकरालता और भयंकरता उनको भयभीत नहीं करती थी। कोमलचित्त और प्रवृत्ति का स्वाभाविक गुण होने के बावजूद युग की माँग के अनुरूप अपने जीवन में परिवर्तन को स्वीकार कर रण-रंग में डूब जाना ही सच्चे वीर की पहचान है। 'नमो अरिहंताण' का जाप जपने वाले शंखनाद कर शत्रुदल का संहार करने को भी तत्पर हो जाये यही तो भारतीय संस्कृति की विशेषता है। दो विचारों में परस्पर विरोधाभास की अपेक्षा सामंजस्य स्थापित करने की प्रवृत्ति हमारी संस्कृति की आधारभूत विशेषता है। इसी के फलस्वरूप जहाँ एक ओर पुरातन परम्पराओं का संरक्षण हुआ है वहीं दूसरी ओर नवीन परम्पराओं का सदैव स्वागत / जब तक यह तत्त्व विद्यमान रहेगा जग में हिन्दुस्तान की संस्कृति सर्वोत्कृष्ट समझी जाती रहेगी और विषम से विषम परिस्थितियों में भी अपना अस्तित्व कायम रखने में सक्षम होगी। इस देश के सांस्कृतिक सरोवर में विभिन्न अंचलों से विविधरूपा पारम्परिक धाराओं के सतत प्रवाहित होते रहने और भारतीय संस्कृति की श्रीवृद्धि की कामना करता हूँ। 1. सूरजप्रकास, भाग 3 (संपादक-सीतारामलालस) में वर्णित कथ्य के आधार पर ये नाम उल्लिखित किये गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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