Book Title: Ahmedabad Yuddh ke Jain Yoddha Author(s): Vikramsinh Gundoj Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 4
________________ १३२ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड वदन्न मजीठ 'जबान' 'विजेस' । त, अमि औरबियौ 'रतनेस' ॥ जई खग वाहत दारण जोस । पड़े खग झाटक सिल्लह पोस । कटै सिर सूर जूट धड़ केक । उभे हुय टूक पड़त अनेक ।। पड़े पग हाथ धरा लपटत । किला किर राखस बालकरंत ॥ 'अभै' भुज भार दियौ अणथाह। सुतौ उजवाल कियौ 'रणसाह' ।। भिड़े 'रतनागर' यूं गज भार । वधै असि औरवियौ त्रिण वार ॥ ४. विजयराज भण्डारी- यह खेतसी भण्डारी का पुत्र था। यह उन ओसवाल मुत्सद्दियों में विशेष स्थान रखता है जिन्होंने जोधपुर राज्य के इतिहास को अपनी सेवाओं द्वारा गौरवान्वित किया । महाराजा अजीतसिंह द्वारा मेड़ते का हाकिम नियुक्त किया गया। दिल्ली के उत्तराधिकार युद्ध में महाराजा की आज्ञानुसार जोधपुर से ससैन्य जाकर विजयराज भण्डारी ने शाहजादे फर्रुखसियर का पक्ष लिया था। गुजरात के सूबेदार मरबुलन्द का दमन करने से लिए महाराजा अभयसिंह ने जब प्रयाण किया तो उन्होंने अपनी सेना को तीन भागों में विभाजित किया । एक महाराजा अभसिंह के अधिकार में और दूसरा राजाधिराज बखतसिंह के अधिकार में एवं तीसरा भण्डारी विजयराज के अधिकार में था । अहमदाबाद के युद्ध में जो व्यूह रचना की गयी उसके अन्दर पाँच मोर्चों में से एक मोर्चे का भार भण्डारी जीवराज के सुपुर्द किया गया था। इस युद्ध में इसने अपनी बुद्धि और रणकुशलता का अच्छा परिचय दिया। ५. गिरधरदास भण्डारी-अहमदाबाद के युद्ध में अपनी अद्भुत वीरता व पराक्रम दिखाने वाले जैन योद्धाओं में गिरधरदास भण्डारी का नाम भी महत्त्वपूर्ण है । गुजरात की चौथ वसूल करने के सम्बन्ध में बाजीराव से बातचीत करने के लिए महाराजा अभयसिंह ने अपने दो प्रतिनिधियों को भेजा उसमें एक गिरधरदास भण्डारी था। इससे यह ज्ञात होता है कि वह बाहुबल का धनी होने के साथ-साथ बुद्धिमान राजनीतिज्ञ भी था। कविराजा करणीदान ने सूरजप्रकास में मोतीदाम छन्द में गिरधरदास भण्डारी का वर्णन निम्नांकित रूप से किया है दलां खल झोकि तुरी हुजदार । भंडारिय जूटत जै गज भार ।। सकौ सिरपोस 'गिरद्धर' सूर । पटोधर 'ऊद' तणौ छक पूर ।। भुहाँ भिडि मुंछ चखां विकराल । काले असि औरवियो कलिचाल । दिये खग झाट गिरद्धरदास । बिढे असवार सहेत वहास ॥ सिलै बंध पाखर बंध संधार । भेला हिज गंज चढे धर भार । बहै खल गाहटतौ जुध बाज । करै खग घाव अरोह सकाज ॥ उडै असि ऊपर लोह अपार । वढे असि भोम चढे णिवार । किलम्मक एक जठ कलिचाल । वुही खग टोप कटे विकराल ।। वही झल ऊपर वीजल वेगि । तठ 'गिरधार' वही धण तेगि ।। उभै हुय टूक पडै अनुरांण । चढे असि साम बियै वहांण ।। बिया असि ऊपरी गज्जर बूर । सझै खग झाट बलोबल सूर ॥ वहै खग झाट भंडारिय 'बाँध' । उडै खल थाट संघाट अथाघ ।। दुजौ असि जाम कटेस उदार । तिजै असि सूर चढे तिण वार । लड़े 'गिरधारिय' अंबर लागि । उई खल थाट सिरै खग आगि ।। ६. सिंघवी जोधमल और मेहता गोकुलदास-ये दोनों जैन योद्धा भी अहमदाबाद के युद्ध में महाराजा अभयसिंह की ओर से लड़े थे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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