Book Title: Ahimsa Divas Manaye Author(s): Rikhabchand Jain Publisher: Z_Ashtdashi_012049.pdf View full book textPage 3
________________ सभी छोटे से छोटे जन्तु की यत्ना से रक्षा का दायित्व अहिंसा एवं उससे प्रस्तुत सहस्तित्व (Co-existance) के आधार निभाना उनके अहिंसा व्रत का आवश्यक अंग है। मन, पर दुनिया के मूल्कों में शान्ति रह सकती है। गाँधी जी की वचन, काया, कर्म से हिंसा करनी, नहीं, करवानी नहीं, अहिंसा की नींव उनकी माता श्री की धार्मिक आस्था, उनके करने वाले की संस्तुति या अनुमोदना भी नहीं करनी। परिवार के संस्कार, विदेश जाने से पहले जैन सन्त के समक्ष ' सम्राट अशोक के हृदय में अहिंसा के भाव कलिंग युद्ध में शाकाहार, नशामुक्ति, व्यभिचार मुक्त जीवन का संकल्प, उनके हुए हिंसा के तांडव कृत्य को देखकर हुआ और उन्होंने प्रायश्चित मित्र मार्गदर्शक जैन श्रावक गृहस्थ चिन्तक राजचन्द्र महर्षि का स्वरूप अहिंसा का सन्देश, भगवान बुद्ध की करुणा, अहिंसा, प्रेम संपर्क था। महावीर के सत्य-अहिंसा का प्रयोग और प्रचार का सन्देश विश्व भर में फैलाने के लिए अनेक प्रबुद्ध प्रज्ञावान जितना महात्मा गांधी द्वारा किया गया, उतना अन्य किसी के द्वारा लोगों के साथ अपने स्वयं के युवा पुत्र, पुत्रियों महेन्द्र एवं संघमित्रा । नहीं। गाँधी को अहिंसा का पुजारी, अहिंसा की मूर्ति, अहिंसा को भी यही दायित्व दिया। फलस्वरूप बुद्ध द्वारा दी गई अहिंसा स्तम्भ, अहिंसा का पुरोधा आदि प्रारूपों से लोग जानते हैं। व्रत को दक्षिण पूर्व एशिया, चीन, जापान, कोरिया, पश्चिम एवं इसलिए आज अहिंसा को व्यापक करने के लिए प्रचार-प्रसार उत्तर के प्रदेशों तक मानव कल्याण हेतु पहुँचाया। यदि सम्राट एवं विश्वशान्ति के लिए और इसके सशक्त प्रयोग हेतु गाँधी से अशोक के दिमाग में भाव हिंसा (जिसकी व्याख्या महावीर करते बेहतर और कोई माध्यम नहीं हो सकता। हैं) की उत्पत्ति कलिंग युद्ध पूर्व हो जाती तो युद्ध से देश को हजारों वर्षों बाद दुनियाँ के नुमाइन्दे राष्ट्र संघ ने विश्व बचाया जा सकता था। आज भी अहिंसा के इस स्वरूप की सबसे शान्ति एवं कल्याण हेतु अहिंसा को माध्यम बनाने के लिए महात्मा ज्यादा आवश्यकता है। हुक्मरानों, उच्चस्थ राजनीतिज्ञों, सेना गांधी के जन्म दिन २ अक्टूबर को पूरी दुनिया में इसे “अहिंसा अधिकारियों, जनभावना को प्रशस्त करने वाले समाज, धर्म दिवस" के रूप में मान्यता दी है, मनाने का संकल्प किया है। जाति के अगुवा लोगों को है। इनका दिमाग जब तक अहिंसक महावीर-बुद्ध-गाँधी अहिंसा के पर्यायवाची शब्द हैं। जहाँ अहिंसा होगा, दुनिया में सशस्त्र वारदात, युद्ध आतंकी हमले नहीं हो वहीं महावीर, वहीं जैन धर्म, वहीं अहिंसा धर्म, वहीं बुद्ध की सकते हैं। यू० एन० ओ० संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मनाये जाने करुणा। वाले अहिंसा के दिवस का सबसे बड़ा पहलू यही है। असुरक्षा, इस अहिंसा दिवस के उद्घोषणा से भारत के नागरिकों भय, अशान्ति ऐसे लोगों की दिमागी अशान्ति एवं अहिंसक में खशी की लहर है। जैन धर्मावलम्बी एवं अहिंसा प्रिय जन तो प्रवतियों से ही संभव है। यही एकमात्र परमाणु विभीषिका से बचने उन्मुक्त हैं। भाव विभोर हैं। इससे भारत का, दुनियाँ के अहिंसा का उपाय है। जरुरत है ऐसे लोगों तक बुद्ध, महावीर और गाँधी प्रिय लोगों की, जैन लोगों की, शान्ति चाहने वालों की जिम्मेवारी के अहिंसा के सन्देश को पहुँचाना ही नहीं उनके मस्तिष्क पटल भी बढ़ गई है। अब हर वर्ष गाँधी जयन्ती पर जन-जन में, घरपर स्थापित करना भी है। घर में, प्रत्येक मोहल्ले में, हरएक गाँव शहर एवं समूचे राष्ट्र में, अहिंसा के नारे और जयघोषों से अधिक जरुरत हर एक विश्व में अहिंसा के प्रेरणात्मक कार्यक्रम बनें। लोग हिंसा के व्यक्ति के जीवन में अहिंसामय व्यवहार अपनाना है। जीवन विचार, हिंसा का रास्ता छोड़, अहिंसक बनें, अहिंसक जीवन पद्धति और जीवन के हरएक पहलू खान-पान, रहन-सहन, शैली अपनायें। निशस्त्रीकरण, सहअस्तित्व, सहकार, प्रेम, मिलना-मिलाना, विचार, सम्पर्क सभी में हिंसा की जगह अहिंसक करुणा, नशामुक्ति, व्याधि मुक्ति गरीबी, उन्मूलन, शाकाहार तरीके अपनाये। इसके लिए मूल्यपरक शिक्षा में अहिंसा के गुणों प्रोत्साहन जैसे विभिन्न आयामी कार्यक्रम बनें। जीवन बदले। का समावेश शिक्षा के माध्यम से बच्चे-बच्चे में हो। घर-घर से दिशा बदले। युग बदले। युग की धारा बदले। अहिंसा, भय और अहिंसा का वास हो। महात्मा गाँधी ने महावीर एवं बुद्ध की अहिंसा असुरक्षा से निजात दिलाये। को जीया है। उनका जीवन ही अहिंसा की किताब है। अहिंसा जैन भाई-बहन, साधु-साध्वी, संघ, संस्थायें गाँधी जी के द्वारा गाँधी ने शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख जन्म दिन २ अक्टूबर को अपने धर्म के सबसे बड़े उत्सव के . दिया, भारत एवं अन्य ब्रिटिश सरकार के आधीन देशों को रूप में मनायें. स्वयं और अपने समीपस्थ लोगों को अहिंसा का स्वतन्त्रता मिली। दुनियां में पहली बार एहसास हुआ कि आपसी पट जीवन में बढ़ाये। विश्वधर्म अहिंसा को जन-जन तक झगडे यद्ध की बजाय प्यार और अहिंसा से भी सुलझ सकते हैं। पहुँचाने का जिम्मा सम्राट अशोक के पुत्र-पुत्रियों ने जिस तरह ० अष्टदशी / 2050 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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