Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
रिखबचन्द जैन अध्यक्ष- अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा अकादमी
अहिंसा दिवस मनायें
अहिंसा मनुष्य की सहज प्रवृति है । साधारणतया मनुष्य हिंसक नहीं होता है । परन्तु कभी-कभी आदमी भी पशुवत व्यवहार करने लग जाता है। हिंसा का भूत सवार होने पर वह दैत्य की तरह मार-काट, क्रोध, द्वेष करने लगता है। पशु जगत तो हिंसा से ही जाना जाता है। पशुओं में दो जातियां होती है, हिंसक पशु जैसे शेर, भालू आदि और अहिंसक पशु जैसे गाय, भेड़, बकरी आदि। लेकिन मानव की सिर्फ एक ही जाति होती है वह है अहिंसक । उत्तेजना स्वरूप या दिमाग में विचारान्तर से वह हिंसक व्यवहार के दौर में आ जाता है। अहिंसक पशु भी इसी तरह उत्तेजना से कुछ समय के लिए हिंसक बन जाते हैं। अतः यह स्पष्ट है कि मानव जाति जन्म से, प्रकृति से, सहज प्रवृति से अहिंसक है, यानि कि अहिंसा उसका धर्म है।
संसार में जितने भी धर्म स्थापित हुए हैं, वे को मनुष्य मनुष्य बनाये रखने के लिए हुए हैं। चूंकि मनुष्य उत्तेजना के वेग में हिंसक रूप धारण कर सकता है इसलिए उसे उस वेग में जाने से रोकने के लिए, उसकी प्रवृति में प्रतिकूल बदलाव न आने पाये इसलिए उसे शिक्षा, प्रशिक्षण, नियम, सिद्धान्त परिचय, ज्ञान आदि दिये जाते हैं। इसी क्रिया को धर्म-बोध, कर्त्तव्य बोध कराना कहते हैं और सहज मानवीय गुण अहिंसा, सत्य, संयम,
परस्पर सहयोग, प्रेम, करुणा, दया के आचरण को ही धर्म व्यवहार की संज्ञा दी गई है। कोई भी दुनिया का धर्म सहज मानवीय गुणों की जगह दानवीय गुणों को बढ़ावा देने या व्यक्ति को उस ओर प्रवृत्त करता है तो वह धर्म नहीं अधर्म है, पाप है, अवांछनीय है। आतंकवादी संगठन या उसका प्रशिक्षण केन्द्र जो मनुष्य को हैवान बनाकर हिंसक काम करवाना चाहता है उसे हम धर्म नहीं कह सकते हैं। लेकिन रक्षा व्यवस्था के लिए दिये जाने वाला ऐसा ही सैन्य प्रशिक्षण धर्मसंगत होगा। अगर सैन्य प्रशिक्षण का उद्देश्य हिंसा फैलाना है, आक्रमण करना है (रक्षाप्रतिरक्षा की जगह) तो ऐसी क्रिया हिंसक कर्म ही गिनी जायेगी। हिन्दू, वैदिक, सनातन, जैन, बौद्ध, सिख, आर्य समाज, पारसी, यहूदी, ईसाई, कन्फुसियस, आदि विभिन्न धर्मों के सिद्धान्त उनकी व्याख्या मनुष्य को अहिंसक प्रवृत्तियों में स्थापित रखना ही है। पाशविक वृत्तियों, दानवीय कृत्यों और घृणित बातों जैसे क्रोध, अहंकार, मद, माया, मोह, लालच, कपट, झूठ, चोरी, व्यभिचार आदि से दूर रखने का काम ही धर्म है। बिना सत्य और अहिंसा के यह कार्य हो ही नहीं सकता है। किसी भी धर्म संस्थापक ने सत्य, अहिंसा के गुणों को छोड़ते हुए अपने धार्मिक नियम नहीं बनाये। बना भी नहीं सकते। अत: यह सत्य है ि
अहिंसा ही सभी धर्मों का सार है, जड़ है और बाकी के धार्मिक नियम, क्रिया, आचरण, ज्ञान इन्हीं से उत्पन्न होते हैं।
आइये, मानव सभ्यता की भी बात कर लें । परस्पर सहयोग, आपसी प्रेम, संवेदना, करुणा, दया, आदि गुणों के मानवीय आचरण के समावेश को ही सभ्यता कहते हैं। क्या कोई मानव समूह अगर कुत्तों की तरह दिन-रात लड़ता है, झगड़ता है, दोष प्रतिदोष एवं कुकर्मों में व्यस्त है तो आप उसे जंगली, असभ्य कहेंगे या सभ्य कहेंगे। हिन्दू, चीनी, मिश्र, रोम, युनान, माया, आदि सभी मानव संस्कृतियां परस्पर प्रेम और सहयोग ( परस्परोपग्रह जीवानाम) के बल पर ही विकसित हुई। भगवान ऋषभदेव ने आदि संस्कृति की स्थापना प्रेम व्यवहार ( या उसे अहिंसा कहें) के आधार पर ही की। कबीलायी जीवन को व्यवस्थित कृषिमय, पशुपालन के साथ ग्राम्य जीवन में परिवर्तित किया। शिकार द्वारा भोजन प्राप्त करने की जगह खेती द्वारा भोजन व्यवस्था दी। इस तरह यह भी स्पष्ट हुआ कि जहाँ सभ्यता है वहाँ अहिंसा ही है, वहाँ अहिंसा ही सर्वोपरि विधि है, अहिंसा ही क्या करना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये कि निर्णायक शक्ति है।
इस तरह यह मालूम पड़ता है कि अहिंसा मनुष्य की सहज प्रवृत्ति है। प्रकृति से मनुष्य अहिंसक है। सभी धर्मों की
० अष्टदशी / 203
For Private
Personal Use Only
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
जड़ सभी धर्मों का सारतत्व, सभी संस्कृतियों का आधार, सभी जन्य शक्ति द्वारा फैसला करने या अपनी बात मनवाने की विधि, विधाओं, नियम-कानूनों, नीति-अनीति भेद का केन्द्र बिन्दू बजाय बात-चीत, समझ-बूझ से, डाइलाग से वार्तालाप या मूल्यांकन के लिए अहिंसा ही है। तभी तो महाभारत महाकाव्य मध्यस्थता द्वारा मसले सुलझाने का है। निर्णय गोली की जगह के प्रस्तोता महाविभूति वेदव्यास ने काव्य के समापन में सर्वश्रेष्ठ बोली से हो। अहिंसा के विभिन्न आयाम हैं : मानवीय गुण अहिंसा को “परमोधर्म' की संज्ञा दी। अहिंसा
मनुष्य का मनुष्य द्वारा संहार न करना, मारना नहीं, कष्ट परमोधर्म यानि कि इससे ऊपर और कोई सत्य नहीं, और कोई
नहीं पहुँचाना, झगड़ना नही, द्वेष नहीं रखना आदि। आज धर्म नहीं, इसके बिना कोई धर्म सम्भव नहीं, कोई सभ्यता जन्मी
राष्ट्रों के बीच युद्ध और गोलीबारी न हो, आतंकवादी नहीं। कोई जाति, क्षेत्र, संघ, समुदाय, देश, राष्ट्र बिना अहिंसा
हमले, बम, नहीं हो, साम्प्रदायिक मारकाट न हो। जाति, के टिक नहीं सकते, रह नहीं सकते। समृद्धि की ओर तो बढ़ने
धर्म, क्षेत्र विचार-भेद को लेकर शस्त्र या हिंसक संघर्ष न की बात ही नहीं है। मनुष्य हर परिस्थिति में अहिंसा चाहता है,
हो। ऐसी ही अहिंसा की सर्वप्रथम एवं सबसे अधिक हिंसा को भगाना चाहता है, हिंसा से अहिंसा की तरफ जाना
आवश्यकता है। दुनिया शस्त्र न बढ़ाये, न प्रयोग में चाहता है। प्रभु महावीर ने कहा अहिंसा, संयम और तप ही मुक्ति
आक्रमण के लिए आये, ऐसी ही अहिंसा की चाहत का मार्ग है, यही धर्म है।
विश्वभर में है। जिस तत्व अहिंसा को हर कोने में, हर देश-राष्ट्र में
सिर्फ मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी, प्राणि-मात्र, हरएक हरहाल ओर हर काल, हर धर्म और हर सभ्यता में मानव सिंचित
जीव-छोटी सी चींटी से लेकर हाथी तक, अहिंसक एवं करना चाहता है, वही मानवीय चाहना, वही प्रवृत्ति विश्व धर्म
क्रूर हिंसक पशुओं शेर आदि तक को भी किसी तरह कही जा सकती है। अत: अहिंसा ही विश्वधर्म है, अहिंसा समूचे
का कष्ट न पहुँचाना, अहिंसा के दायरे में सम्पूर्ण सर्वत्र मानव जगत की चाहना है, अहिंसा ही विश्व शक्ति का मूल है,
प्राणी जगत को लाना है। जैसे हमें अपनी जान प्रिय है वैसे अहिंसा में ही विश्व की रक्षा की शक्ति छिपी हुई है। अहिंसा
ही हरएक प्राणी को अपनी जान प्रिय है, मरना कोई नहीं का गुण ही मानवता का भविष्य है, और अहिंसा ही उसे नई
चाहता। जियो और जीने दो। शाकाहार, सात्विक भोजन उपलळ्यिों और समृद्धि की ओर ले जायेगी। आओ, हम अहिंसा
__इसी पहलू को पोषित करते हैं। की ओर चलें। हिंसा छोड़, अहिंगा अपनायें। हम अहिंसामय
अहिंसा की सोच और आगे बढ़ाती है और जीवो और बनें। हम अहिंसा के पुजारी ही नहीं, हम अहिंसा द्वारा जीने की
जीने दो की जगह जियो और जीने दो में सहयोग करना। चाह का संकल्प लें, उस पर दृढ़ टिके रहने की शक्ति प्राप्त
किसी को दु:खी देखकर कष्ट में देखकर, भूखा देखकर करें। चाहे कुछ भी हो हिंसा पर नहीं उतरेंगे, उस दैत्यवृत्ति से
दु:ख बांटने और दूसरे के कष्ट को दूर करना भी अहिंसा दूर-दूर रहेंगे, ताकि हम मानव-मानव ही बन रहें। सीधे शब्दों में
का आयाम है। आपका राजसी भोजन भूखे पड़ोसी को आदमी के आदमी बने रहने का नाम ही अहिंसा है और जानवर
हिंसा की तरफ प्रवृत कर सकता है। करुणा, दया, प्रेम, या राक्षस कोई मूल से भी बनना नहीं चाहता, बनना नहीं चाहिये।
आपसी सहकार की अपेक्षा अहिंसामय व्यवहार में है। कैसे अपनायें अहिंसा?
परमात्मा महावीर ने अहिंसा की सूक्ष्मतम विश्लेषण एवं यद्यपि अहिंसा सभी धर्मों का सार तत्व है, अधिकतर
व्याख्या करते हुए बताया। भाव हिंसा, दिमाग में या सोच धर्मों और उनकी विभिन्न सम्प्रदायों में अहिंसा को परस्पर प्रेम,
में हिंसक कृत्यों का संकल्प जागना भी हिंसा है। हिंसा सहयोग, करुणा, दया आदि विभिन्न गुणों के रूप में अपरोक्ष
वाणी (वचन) या कर्म के साथ-साथ भाव से भी, मन से तरीके से ही परोसा है। हिंसा को कभी-कभी किन्हीं परिस्थितियों
भी होती है, बुरे भाव को यदि मनुष्य के उद्गम स्थान में “वीरता' की संज्ञा दे दी जाती है। अहिंसा की जगह
दिमाग पर ही रोक दिया जाये तो हिंसक क्रिया पर स्वतः "शक्ति" की अपेक्षा भी की जाती है। अहिंसा को यदा-कदा
रोक लग जायेगी। महावीर की अहिंसा में इतनी बारीकी कायरता समझ लिया जाता है। अहिंसा कायरता नहीं है। रक्षा
का परहेज है। अहिंसा की बारीकियों के परिपालन में और प्रतिरक्षा के लिए हथियारों का या शक्ति का प्रयोग अहिंसा
महावीर के धर्म में दीक्षित संयमी सन्तों का कोई वर्जित नहीं करती है। अहिंसा में प्राथमिकता हथियारों या शस्त्र
मुकाबला नहीं। वायु काय, जल काय, अग्निकाय आदि
४.
० अष्टदशी / 2040
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
सभी छोटे से छोटे जन्तु की यत्ना से रक्षा का दायित्व अहिंसा एवं उससे प्रस्तुत सहस्तित्व (Co-existance) के आधार निभाना उनके अहिंसा व्रत का आवश्यक अंग है। मन, पर दुनिया के मूल्कों में शान्ति रह सकती है। गाँधी जी की वचन, काया, कर्म से हिंसा करनी, नहीं, करवानी नहीं, अहिंसा की नींव उनकी माता श्री की धार्मिक आस्था, उनके
करने वाले की संस्तुति या अनुमोदना भी नहीं करनी। परिवार के संस्कार, विदेश जाने से पहले जैन सन्त के समक्ष ' सम्राट अशोक के हृदय में अहिंसा के भाव कलिंग युद्ध में शाकाहार, नशामुक्ति, व्यभिचार मुक्त जीवन का संकल्प, उनके हुए हिंसा के तांडव कृत्य को देखकर हुआ और उन्होंने प्रायश्चित
मित्र मार्गदर्शक जैन श्रावक गृहस्थ चिन्तक राजचन्द्र महर्षि का स्वरूप अहिंसा का सन्देश, भगवान बुद्ध की करुणा, अहिंसा, प्रेम
संपर्क था। महावीर के सत्य-अहिंसा का प्रयोग और प्रचार का सन्देश विश्व भर में फैलाने के लिए अनेक प्रबुद्ध प्रज्ञावान
जितना महात्मा गांधी द्वारा किया गया, उतना अन्य किसी के द्वारा लोगों के साथ अपने स्वयं के युवा पुत्र, पुत्रियों महेन्द्र एवं संघमित्रा ।
नहीं। गाँधी को अहिंसा का पुजारी, अहिंसा की मूर्ति, अहिंसा को भी यही दायित्व दिया। फलस्वरूप बुद्ध द्वारा दी गई अहिंसा स्तम्भ, अहिंसा का पुरोधा आदि प्रारूपों से लोग जानते हैं। व्रत को दक्षिण पूर्व एशिया, चीन, जापान, कोरिया, पश्चिम एवं इसलिए आज अहिंसा को व्यापक करने के लिए प्रचार-प्रसार उत्तर के प्रदेशों तक मानव कल्याण हेतु पहुँचाया। यदि सम्राट एवं विश्वशान्ति के लिए और इसके सशक्त प्रयोग हेतु गाँधी से अशोक के दिमाग में भाव हिंसा (जिसकी व्याख्या महावीर करते बेहतर और कोई माध्यम नहीं हो सकता। हैं) की उत्पत्ति कलिंग युद्ध पूर्व हो जाती तो युद्ध से देश को हजारों वर्षों बाद दुनियाँ के नुमाइन्दे राष्ट्र संघ ने विश्व बचाया जा सकता था। आज भी अहिंसा के इस स्वरूप की सबसे शान्ति एवं कल्याण हेतु अहिंसा को माध्यम बनाने के लिए महात्मा ज्यादा आवश्यकता है। हुक्मरानों, उच्चस्थ राजनीतिज्ञों, सेना गांधी के जन्म दिन २ अक्टूबर को पूरी दुनिया में इसे “अहिंसा अधिकारियों, जनभावना को प्रशस्त करने वाले समाज, धर्म दिवस" के रूप में मान्यता दी है, मनाने का संकल्प किया है। जाति के अगुवा लोगों को है। इनका दिमाग जब तक अहिंसक महावीर-बुद्ध-गाँधी अहिंसा के पर्यायवाची शब्द हैं। जहाँ अहिंसा होगा, दुनिया में सशस्त्र वारदात, युद्ध आतंकी हमले नहीं हो वहीं महावीर, वहीं जैन धर्म, वहीं अहिंसा धर्म, वहीं बुद्ध की सकते हैं। यू० एन० ओ० संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मनाये जाने करुणा। वाले अहिंसा के दिवस का सबसे बड़ा पहलू यही है। असुरक्षा,
इस अहिंसा दिवस के उद्घोषणा से भारत के नागरिकों भय, अशान्ति ऐसे लोगों की दिमागी अशान्ति एवं अहिंसक में खशी की लहर है। जैन धर्मावलम्बी एवं अहिंसा प्रिय जन तो प्रवतियों से ही संभव है। यही एकमात्र परमाणु विभीषिका से बचने उन्मुक्त हैं। भाव विभोर हैं। इससे भारत का, दुनियाँ के अहिंसा का उपाय है। जरुरत है ऐसे लोगों तक बुद्ध, महावीर और गाँधी
प्रिय लोगों की, जैन लोगों की, शान्ति चाहने वालों की जिम्मेवारी के अहिंसा के सन्देश को पहुँचाना ही नहीं उनके मस्तिष्क पटल
भी बढ़ गई है। अब हर वर्ष गाँधी जयन्ती पर जन-जन में, घरपर स्थापित करना भी है।
घर में, प्रत्येक मोहल्ले में, हरएक गाँव शहर एवं समूचे राष्ट्र में, अहिंसा के नारे और जयघोषों से अधिक जरुरत हर एक विश्व में अहिंसा के प्रेरणात्मक कार्यक्रम बनें। लोग हिंसा के व्यक्ति के जीवन में अहिंसामय व्यवहार अपनाना है। जीवन विचार, हिंसा का रास्ता छोड़, अहिंसक बनें, अहिंसक जीवन पद्धति और जीवन के हरएक पहलू खान-पान, रहन-सहन, शैली अपनायें। निशस्त्रीकरण, सहअस्तित्व, सहकार, प्रेम, मिलना-मिलाना, विचार, सम्पर्क सभी में हिंसा की जगह अहिंसक करुणा, नशामुक्ति, व्याधि मुक्ति गरीबी, उन्मूलन, शाकाहार तरीके अपनाये। इसके लिए मूल्यपरक शिक्षा में अहिंसा के गुणों प्रोत्साहन जैसे विभिन्न आयामी कार्यक्रम बनें। जीवन बदले। का समावेश शिक्षा के माध्यम से बच्चे-बच्चे में हो। घर-घर से दिशा बदले। युग बदले। युग की धारा बदले। अहिंसा, भय और अहिंसा का वास हो। महात्मा गाँधी ने महावीर एवं बुद्ध की अहिंसा असुरक्षा से निजात दिलाये। को जीया है। उनका जीवन ही अहिंसा की किताब है। अहिंसा
जैन भाई-बहन, साधु-साध्वी, संघ, संस्थायें गाँधी जी के द्वारा गाँधी ने शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख जन्म दिन २ अक्टूबर को अपने धर्म के सबसे बड़े उत्सव के . दिया, भारत एवं अन्य ब्रिटिश सरकार के आधीन देशों को रूप में मनायें. स्वयं और अपने समीपस्थ लोगों को अहिंसा का स्वतन्त्रता मिली। दुनियां में पहली बार एहसास हुआ कि आपसी पट जीवन में बढ़ाये। विश्वधर्म अहिंसा को जन-जन तक झगडे यद्ध की बजाय प्यार और अहिंसा से भी सुलझ सकते हैं। पहुँचाने का जिम्मा सम्राट अशोक के पुत्र-पुत्रियों ने जिस तरह
० अष्टदशी / 2050
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________ स. बाश बुद्ध के सन्देश को सुदूर क्षेत्रों में पहुँचाने का निभाया था, उसी पैदा करने के लिए शिक्षा में प्रयुक्त पुस्तकें, पाठ्य सामग्री में तरह महावीर की अहिंसा सन्देश वीर की सन्ताने संभालें। प्रभु अहिंसा के विषय पर प्रस्तुति हो। उनको इसके लिए शक्ति दें। __ अहिंसा संघ, इन्टरनेट पर जानकारी परक वेब साइट, भारत सरकार गाँधीवादी, संस्थायें, जैन समाज, अहिंसा उत्तर प्रत्युत्तर व्यवस्था करे तो बहुत अच्छा होगा। अहिंसा के प्रिय प्रज्ञावान लोग इस जिम्मेवारी में अग्रसर का रोल अदा करें, वस्तु विषय पर सामग्री हिन्दी और भारतीय भाषाओं से भी अहिंसा के विभिन्न पहलुओं पर लेख, चर्चायें, संवाद, नाटक, अधिक अंग्रेजी, चाइनीज, फ्रेन्च, स्पेनीश, कोरियन, जापानी, वाद-विवाद, नजरिया, टी०वी० कार्यक्रम 2 अक्टूबर से पहले उर्दू, अरबिक, हिबु आदि सभी देशों की स्थानीय भाषाओं में संकलित हो ताकि मीडिया चाहे अखबार, पत्र, पत्रिकाएं, रेडियो, आवश्यकता है। यह काम गिनाना आसान है, करना-करवाना, टी०वी० हो अहिंसा के बारे में प्रचुर युक्ति संगत दिल-दिमाग दुसाध्य एवं अति सघन साधनों के बिना नहीं होने वाला है। को छूने वाली सामग्री उपलब्ध रहे। एकमात्र ऐसा प्रयास अहिंसा लेकिन अहिंसा के समर्पित लोग अगर सब मिलकर थोड़ा-थोड़ा दिवस की सार्थकता सिद्ध कर सकते हैं पूरी दुनियाँ में। बोझ भी संभालें तो यह चमत्कारी काम कोई कठिन नहीं। मीडिया चाहे टी०वी०, रेडियो, पत्र-पत्रिकाओं में भी आइये, आगे आयें, अहिंसा के बढ़ावे के लिए वातावरण बनावें, चाहिये 2 अक्टूबर के दिन कार्यक्रमों में पठनीय सामग्री में विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की इस पहल का स्वागत, सहकार अहिंसा को मुख्य थीम बनावें। पुरा होम वर्क, फील्ड वर्क, डेस्क करें। अहिंसा की विचारधारा विश्व में सशक्त बने. हिंसा का वर्क, चिन्तन, लाइब्रेरी वर्क, सम्पर्क, खोज, शोध पूरा-पूरा करें, निवारण हो, मानव-मानव से भयमुक्त हो, हर एक के जीवन को शक्ति, दूरदर्शिता से करें। आज अगर मीडिया इन पहलुओं को खुशहाल बनाने के लिए अहिंसा एक माध्यम बने। अहिंसा प्रिय शक्ति के साथ उजागर करता है, तो जनमानस बदलेगा, दिल लोग, अहिंसा पुरोधा, प्रज्ञावान नागरिक अपनी जिम्मेवारी इस बदलेगा। दिल बदलेगा तो अहिंसा दिलों में जगह लेगी, हिंसा का संदर्भ में समझे और निभावे, गाँधी जयनती, अहिंसा की जननी निवारण होगा, शान्ति की स्थापना होगी। प्रज्ञावान, उच्चस्थ बने, अहिंसा हर एक की जीवन-यात्रा को प्रभावित ही न करे, अधिकारी, शासनाध्यक्ष, सेनापति एवं रक्षा विश्लेषक, सन्त सारी जीवनयात्रा ही हर एक नागरिक की अहिंसामय बन जाये। महात्मा, चिन्तक-लेखक सबके विचार अहिंसा के विषय पर यही अहिंसा दिवस मनाना होगा, यही अहिंसा को मानना होगा. मीडिया जन-जन को परोसे, अहिंसा के पक्ष में जनाधार बनावे। यही अहिंसा मानव को प्रलय की असुरक्षा से बचायेगी। अहिंसा प्रेम, अहिंसा, करुणा हर एक हृदय से झरे। हमारा भविष्य है, अहिंसा शान्ति और सुरक्षा की गारन्टी है। विश्व की हर एक राजनधानी में शासनाध्यक्ष अहिंसा दिवस पर राष्ट्रीय आयोजन करें। उससे हर एक नागरिक तक विचार प्रवाह होगा। उस दिन समस्त मीडिया अहिंसा के पक्षधरों को खंगाले। उनका सोच-विचार, दर्शन जन-जन तक पहुँचाये। यही एक तात्कालिक रास्ता है। अहिंसा के पक्षधरों एवं पुरोधों को चाहिये कि मीडिया संसार को इस बीड़े को उठाने के लिए प्रेरित करे, तैयार करे। उनसे इस प्रयास में सहकार करे। इस वर्ष के कार्यक्रमों की फिर समीक्षा करें और अगले वर्ष के कार्यक्रमों के लिए और उन्नत जमीन तैयार करें। अहिंसा दिवस पर कार्यक्रमों के साथ-साथ वर्षभर सन्देश प्रवाहित रहे इसके लिए अहिंसा प्रचार संघ बने, प्रचारकों, के प्रशिक्षण की व्यवस्था बने, विभिन्न अहिंसा प्रचार संस्थानों का समन्वय सुनिश्चित हो। अहिंसा के सन्देश के प्रतीकात्मक अहिंसा द्वार, शान्ति स्तूप, शान्ति स्तम्भ दुनिया के हर एक शहर के प्रमुख भाग में बनाये जायें। बच्चों में अहिंसा के प्रति रूझान 0 अष्टदशी /2060