Book Title: Agamoddharak Krutisanodh Author(s): Labhsagar Publisher: Agamoddharak Granthmala View full book textPage 8
________________ णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स / पू० आगमोद्धारक-आचार्यश्री आनन्दसागरसूरि-प्रणीता जैन गीता। . / अध्यायः प्रथमः / ( अर्हदधिकारः) अर्हतो मनुते देवान्, दर्शयन्तश्चतुर्दश / / स्वप्नान् गर्भावतारे ये, मलजम्बालवर्जिताः // 1|| जातमात्राः सुराद्रौ येऽभ्यसिञ्च्यन्त सुरेश्वरैः / न स्तन्यपाः सुरानीत-फलादा उचितक्रियाः // 2 // त्यक्तहिंसादिपाप्मानोऽकम्प्याः परिषहादिभिः / हत्वो घातीनि लब्ध्वाऽग्य, ज्ञानं सहायनिस्पृहाः // 3 / / साधुसाध्व्यः श्राद्धश्राद्ध्यश्चतुर्धासङ्घसङ्ग्रहाः / / आद्यन्तयामयोनित्यं, योजनानुगदेशनाः ... // 4 // देशका द्विविधे धर्मे, जिनमामप्रभावतः / चत्वारोऽतिशया जाते, सुरसाध्योनविंशतिः // 5 // कैवल्ये त्वेकादशैव, चतुस्त्रिंशत् सदाऽर्हताम् / . मायाविनो न तान् धतु मीशास्तादृशरूपिणः / / 6 / / शक्रादिभिः कृतां पूजा, प्रातिहार्याष्टकैर्दधुः / अयोगितां गता मुक्ता, जन्ममृत्युरुजाऽन्तकैः // 7 // सिद्धि विना गतिर्नान्या, सदा कैवल्यचित्सुखाः / सर्वभक्षककालस्य, भक्षकाः स्थिरतान्विताः // 8 //Page Navigation
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