Book Title: Agamoddharak Krutisanodh
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ जैनगीता। राष्ट्रस्य भारमखिलं प्रजयाऽऽयतीक्षोऽमात्यो यथा वहति भूतिकरो नृपाणाम् / श्रीवाचकेन्द्रवितताखिलगच्छसारः,.. सच्छासनेन जयमेति मुनीशवर्यः // 11 / / रत्नानि राजकुललब्धमहांसि जातेः, .. शस्यानि ते यदि भवन्ति गुणान्वितानि / जीवादिसार्थवहनानि पदानि सन्ति, श्रीवाचकान्तिक उदारतराणि सूत्रः // 12 // सूत्रानुयोगकृतिषु प्रवराः पतन्ति, पादेषु विघ्नविजयाय कृतज्ञतायै / . बुद्धा जिनेश्वरमुनीश्वरसङ्गतेषु, वंशस्य वाचकततेरपि शुद्धि ( शास्त्र) सिद्धयै / / 13 / / अनुयोगधराः परमेष्ठिपदे, विधिसिद्धपदान् प्रणमन्ति मुदा, अनुयोग इहास्ति जिनेशततो, वरिवर्तति दक्षिणतो भरते / अनुयोग इह गुरुस्कन्दिलसन्मुनिपान्तिषदा समसूत्रगतः, नागार्जुनसूरिवरेण ततो नमति श्रद्धाबलिकः सुजनः // 14 // शुभवाचकवंशगता मुनिपा, विदिता जगति स्वाति (सूरि) प्रमुखाः, वरनन्दिकरोऽपि च नन्दिकरो, वरवाचकदेव इहैव मतः / / / आवश्यकमादिमतं मुनिपै-रुद्देशमुखत्रितये क्रमतो, नन्दिः पुनरध्ययनीयपदं, सकलेऽप्यनुयोगविधौ यमिनाम् / / 15 / / यथा मुनीशः सकलेऽपि शास्त्रे, बिभर्ति मुख्यत्वममानमाप्तितः / तथैव मुख्याः खलु वाचकेन्द्रा-स्ततो भवेज्जैनवरो नतस्तान् / / 16 / / इति चतुर्थोऽध्यायः /

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 248