Book Title: Agamo ki Vachnaye
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 5
________________ | आगमों की वाचनाएँ ... 41 नेपाल आदि पर्वतीय क्षेत्र की ओर चला गया था। भद्रबाहु की नेपालयात्रा का भी संभवत: यही कारण रहा होगा। जो भी उपलब्ध साक्ष्य हैं उनसे यह फलित होता है कि पाटलिपुत्र की वाचना के समय द्वादश अंगों को ही व्यवस्थित करने का प्रयत्न हुआ था। उसमें एकादश अंग सुव्यवस्थित हुए और बारहवें दृष्टिवाद, जिसमें अन्यदर्शन एवं महावीर के पूर्व पार्श्वनाथ की परम्परा का साहित्य समाहित था, का संकलन नहीं किया जा सका। इसी संदर्भ में स्थूलिभद्र के द्वारा भद्रबाहु के सान्निध्य में नेपाल जाकर चतुर्टश पूर्वो के अध्ययन की बात कही जाती है। किन्तु स्थूलिभद्र भी मात्र दस पृर्वो का ही ज्ञान अर्थ सहित ग्रहण कर सके. शेष बार पूर्वो का केवल शाब्दिक जान ही प्राप्त कर सके। इसका फलितार्थ यही है कि पाटलिपुत्र की वाचना में एकादश अंगों का ही संकलन और सम्पादन हुआ था। किसी भी चतुर्दश पूर्वविद् की उपस्थिति नहीं होने से दृष्टिवाद के संकलन एवं सम्पादन का कार्य नहीं किया जा सका। उपांग साहित्य के अनेक ग्रन्थ जैसे प्रज्ञापना आदि, छेटसूत्रों में आचारांग, कल्प, व्यवहार आदि तथा चूलिकासूत्रों में नन्दी, अनुयोगद्वार आदि– ये सभी परवर्ती कृति होने से इस वाचना में सम्मिलित नहीं किये गए होंगे। यद्यपि आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन आदि ग्रन्थ पाटलिपुत्र की वाचना के पूर्व के हैं, किन्तु इस वाचना में इनका क्या किया गया, यह जानकारी प्राप्त नहीं है। हो सकता है कि सभी साधु-साध्वियों के लिये इनका स्वाध्याय आवश्यक होने के कारण इनके विस्मत होने का प्रश्न ही न उठा हो। पाटलिपुत्र वाचना के बाद दूसरी वाचना उड़ीसा के कुमारी पर्वत (खण्डगिरि) पर खारवेल के राज्य काल में हुई थी। इस वाचना के संबंध में मात्र इतना ही ज्ञान है कि इसमें भी श्रुत को सुव्यवस्थित करने का प्रयत्न किया गया था। संभव है कि इस वाचना में ई.पू. प्रथम शती से पूर्व रचित ग्रन्थों के संकलन और सम्पादन का कोई प्रयत्न किया गया हो। जहां तक माथुरी वाचना का प्रश्न है, इतना तो निश्चित है कि उसमें ई.सन् की चौथी शती तक के रचित सभी ग्रन्थों के संकलन एवं सम्पादन का प्रयत्न किया गया होगा। इस वाचना के कार्य के संदर्भ में जो सूचना मिलती है, उसमें इस वाचना में कालिकसूत्रों को व्यवस्थित करने का निर्देश है। नन्दिसूत्र में कालिकसूत्र को अंगबाह्य, आवश्यक व्यतिरिक्त सूत्रों का ही एक भाग बताया गया है। कालिकसूत्रों के अन्तर्गत उत्तराध्ययन, ऋषिभाषित, दशाश्रुत, कल्प, व्यवहार, निशीथ तथा वर्तमान में उपांग के नाम से अभिहित अनेक ग्रन्थ आते हैं। हो सकता है कि अंग सूत्रों की जो पाटलिपुत्र की वाचना चली आ रही थी वह मथुरा में मान्य नहीं हो, किन्तु उपांगों में से कुछ को तथा कल्प आदि छेदसूत्रों को सुव्यवस्थित किया गया हो। किन्तु यापनीय ग्रन्थों की टीकाओं में जो माथरी वाचना के आगगों के उद्धरण मिलते हैं उन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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