Book Title: Agamo ki Vachnaye
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 3
________________ 39 आगमों की वाचनाएँ कि आर्य स्कन्दिल और नागार्जुन समकालिक ही रहे होंगे। नन्दी स्थविरावली में आर्य स्कन्दिल के संदर्भ में यह कहा गया है कि उनका अनुयोग आज भी दक्षिणार्द्ध भरत क्षेत्र में प्रचलित है। इसका एक तात्पर्य यह भी हो सकता है कि उनके द्वारा सम्पादित आगम दक्षिण भारत में प्रचलित थे। ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि उत्तर भारत के निर्ग्रन्थ संघ के विभाजन के फलस्वरूप जिस यापनीय सम्प्रदाय का विकास हुआ था उसमें आर्य स्कन्दिल के द्वारा सम्पादिन आगम ही मान्य किये जाते थे और इस यापनीय सम्प्रदाय का प्रभाव क्षेत्र मध्य और दक्षिण भारत था। आचार्य पाल्यकीर्ति शकटायन ने तो स्त्री-निवाण प्रकरण में स्पष्ट रूप से मथुरागम का उल्लेख किया है। अत: यह स्पष्ट है कि यापनीय सम्प्रदाय जिन आगमों को मान्य करता था. वे माथुरी वाचना के आगम थे। मूलाचार, भगवती-आराधना आदि यापनीय आगमों में वर्तमान में श्वेताम्बर मान्य आचारांग, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, कल्प, व्यवहार, संग्रहणीसूत्रों, नियुक्तियों आदि की सैकड़ों गाथाएँ आज भी उपलब्ध हो रही हैं। इससे यही फलित होता है कि यापनीयों के पास माथुरी वाचना के आगम थे। हम यह भी पाते हैं कि यापनीय ग्रन्थों में जो आगमों की गाथाएँ मिलती हैं वे न तो अर्धमागधी में हैं, न महाराष्ट्री प्राकृत में, अपितु वे शौरसेनी में हैं। मात्र यही नहीं अपराजित की भगवतीआराधना की टीका में आचारांग, उत्तराध्ययन, कल्पसूत्र , निशीथ आदि से जो अनेक अवतरण दिये हैं वे सभी अर्द्धमागधी में न होकर शौरसेनी में हैं। इससे यह फलित होता है कि स्कंदिल की अध्यक्षता वाली माथुरी वाचा में आगगों को अर्द्धमागधी भाषा पर शौरसेनी का प्रभाव आ गया था। दूसरे माथुरी वाचना के आगमों के जो भी पाठ भगवती-आराधना की टीका आदि में उपलब्ध होते हैं, उनमें वल्लभी वाचना के वर्तमान आगमों से पाठभेद भी देखा जाता है। साथ ही अचेलकत्व की समर्थक कुछ गाथाएँ और गद्यांश भी पाये जाते हैं। कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में अनुयोगद्वारसूत्र, प्रकीर्णकों, नियुक्ति आदि की कुछ गाथाएँ क्वचित् बाठभेद के साथ मिलती हैं-संभवत:उन्होंने ये गाथाएँ यापनीयों के माथुरी वाचना के आगमों से ही ली होगी। एक ही समय में आर्य स्कन्दिल द्वारा मथुरा में और नागार्जुन द्वारा वल्लभी में वाचना किये जाने की एक संभावना यह भी हो सकती है कि दोनों में किन्हीं बातों को लेकर मतभेद थे। संभव है कि इन मतभेदों में वस्त्र--पात्र आटि संबंधी प्रश्न भी रहे हों। पं० कैलाशचन्द्रजी ने जैन साहित्य का इतिहास .. पूर्व पीठिका (पृ.५००) में माथुरी वाचना की समकालीन वल्लभी वाचना के प्रमुख रूप में देवगिणी का उल्लेख किया है, यह उनकी भ्रान्ति है। वास्तविकना तो यह है कि माथुरी वाचना का नेतृत्व आर्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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