Book Title: Agamo ki Vachnaye
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 4
________________ जिनवाणी जैनागम- साहित्य विशेषाङ्क स्कन्दिल और वल्लभी की प्रथम वाचना का नेतृत्व आर्य नागार्जुन कर रहे थे और ये दोनों समकालिक थे, यह बात हम नन्दीसूत्र के प्रमाण से पूर्व में ही कह चुके हैं। यह स्पष्ट है कि आर्य स्कन्दिल और नागार्जुन की वाचना में मतभेद था । पं० कैलाशचन्द्र जी ने यह प्रश्न उठाया है कि यदि वल्लभी वाचना नागार्जुन की थी तो देवर्द्धि ने वल्लभी में क्या किया ? साथ ही उन्होंने यह भी कल्पना कर ली कि वादिवेतालशान्तिसूरि वल्लभी की वाचना में नागार्जुनीयों का पक्ष उपस्थित करने वाले आचार्य थे। हमारा यह दुर्भाग्य है कि दिगम्बर विद्वानों ने श्वेताम्बर साहित्य का समग्र एवं निष्पक्ष अध्ययन किये बिना मात्र यत्र-तत्र उद्धृत या अंशत: पठित अंशों के आधार पर अनेक भ्रान्तियाँ खड़ी कर दीं। इसके प्रमाण के रूप में उनके द्वारा उद्धृत मूल गाथा में ऐसा कहीं उल्लेख ही नहीं है कि शान्तिसूरि वल्लभी वाचना के समकालिक थे। यदि हम आगमिक व्याख्याओं को देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि अनेक वर्षो तक नागार्जुनीय और देवर्द्धि की वाचनाएँ साथ-साथ चलती रही हैं, क्योंकि इनके पाठान्तरों का उल्लेख मूल ग्रन्थों में कम और टीकाओं में अधिक हुआ है। पंचम वाचना वी. नि. के ९८० वर्ष पश्चात् ई. सन् की पाँचवी शती के उत्तरार्द्ध में आर्य स्कन्दिल की माथुरी वाचना और आर्य नागार्जुन की बल्लभी वाचना के लगभग १५० वर्ष पश्चात् देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण की अध्यक्षता में पुनः वल्लभी में एक वाचना हुई। इस वाचना में मुख्यतः आगमों को पुस्तकारुढ़ करने का कार्य किया गया। ऐसा लगता है कि इस वाचना में माधुरी और नागार्जुनीय दोनों वाचनाओं को समन्वित किया गया है और जहां मतभेद परिलक्षित हुआ वहाँ "नागार्जुनीयास्तु पठन्ति" ऐसा लिखकर नागार्जुनीय पाठ को भी सम्मिलित किया गया है। समीक्षा गया प्रत्येक वाचना के संदर्भ में प्रायः यह कहा जाता है कि मध्यदेश में द्वादशवर्षीय दुष्काल के कारण श्रमणसंघ समुद्रतटीय प्रदेशों की ओर चला और वृद्ध मुनि, जो इस अकाल में लम्बी यात्रा न करे सके, कालगत हो गये। सुकाल होने पर जब मुनिसंघ लौटकर आया तो उसने यह पाया कि उनके श्रुतज्ञान में विस्मृति और विसंगति आ गयी है। प्रत्येक वाचना से पूर्व अकाल की यह कहानी मुझे बुद्धिगम्य नहीं लगती है। मेरी दृष्टि में प्रथम वाचना में श्रमण संघ के विशृंखलित होने का कारण अकाल की अपेक्षा मगध राज्य में युद्ध से उत्पन्न अशांति और अराजकता ही थी, क्योंकि उस समय नन्दों के अत्याचारों एवं चन्द्रगुप्त मौर्य के आक्रमण के कारण मगध में अशांति थी। उसी के फलस्वरूप श्रमण संघ सुदूर समुद्रीतट की ओर या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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