Book Title: Agam Suttani Satikam Part 21 Vyavahara
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 474
________________ [9] અમારા સંપાદીત ૪૫ આગમોમાં આવતા મૂલ નો અંક તથા તેમાં સમાવિષ્ટ ગાથા क्रम आगमसूत्र | मूलं । गाथा | क्रम | आगमसूत्र मूलं | गाथा १. आचार ५५२ ७० 3. | १४२ | १४२ २७. सूत्रकृत ८०६ स्थान १०१० समवाय ३८३ भगवती १०८७ ज्ञाताधर्मकथा २४१ ७. | उपासक दशा ७३ अन्तकृद्दशा ९. | अनुत्तरोपपातिक | १७२ १७२ १६१ | १३९ १३३ १३३ १३७ | १३७ ६२ ८२ ८२ ३०७ ३०७ १०. प्रश्नव्याकरण ४७ ६६४ ६६४ ११. ४७ १४२० ७७ | १४७ | २४. | चतुःशरण ७२३ | २५. । आतुरप्रत्याख्यान १६९ । २६. | महाप्रत्याख्यानं भक्तपरिज्ञा ११४ | २८. | तंदुलवैचारिक ५७ | २९. | संस्तारक १३ । ३०. । गच्छाचार १२ | ३१. गणिविद्या ४ | ३२. | देवेन्द्रस्तव १४ | ३३. | मरणसमाधि ३ | ३४. । निशीष | ३५. | बृहत्कल्प ३६. । व्यवहार | ३७. | दशाश्रुतस्कन्ध २३१ । ३८. जीतकल्प १०३ | ३९. | महानिशीथ | ४०. | आवश्यक १३१ ४१. ओघनियुक्ति - ४१. | पिण्डनियुक्ति १ | ४२. | दशवैकालिक उत्तराध्ययन १ | ४४. | नन्दी । अनुयोगद्वार २१५ १३. राजा | ८५ २८५ ३९८ ११४ ६२२ १०३ | १०३ २१४ विपाकश्रुत १२. | औपपातिक राजप्रश्निय १४.| जीवाभिगम १५. प्रज्ञापना १६. सूर्यप्रज्ञप्ति १७. चन्द्रप्रज्ञप्ति १८. जम्बूदीपप्रज्ञप्ति १९. निरयावलिका २०. कल्पवतंसिका २१. पुष्पिता पुष्पचूलिका २३./ वण्हिदशा १५२८ २१८ ९२ २१ ३६५ ११६५ ११६५ २१ ७१२ । ७१२ ५४० ५१५ ११ २२. ३ १७३१ ।१६४० | १६८ । ९३ ३५० । १४१ नोध :- 65 गाथा संध्यानो समावेश मूलं मां 25 °४ सय छे. ते मूल सिपायनी सस गाथा सम४वी नही. मूल शब्द से सभी सूत्र भने गाथा बने भाटे नो मापेलो. संयुक्त मनुभछे. गाथा Mi४ संपानीमा सामान्य . ५२वती होवाथी तेनो मतपत्र આપેલ છે. પણ સૂત્રના વિભાગ દરેક સંપાદકે ભિન્નભિન્ન રીતે કર્યા હોવાથી અમે સૂત્રાંક જુદો પાડતા નથી. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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