Book Title: Agam Suttani Satikam Part 01 Aacharang
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 454
________________ [3] क्रम ४७३ आगमसूत्रनाम .मूल | वृत्ति-कर्ता • वृत्ति श्लोक प्रमाण श्लोकप्रमाण |३२. देवेन्द्रस्तव ३७५ आनन्दसागरसूरि (संस्कृत छाया) | ३७५ |३३. मरणसमाधि * ८३७ आनन्दसागरसूरि (संस्कृत छाया) | ८३७ ३४. | निशीथ ८२१ जिनदासगणि (चूणि) २८००० सङ्घदासगणि (भाष्य) ७५०० ३५. | बृहत्कल्प | मलयगिरि+क्षेमकीर्ति | ४२६०० सङ्घदासगणि (भाष्य) ७६०० ३६. व्यवहार ३७३ | मलयगिरि ३४००० | सङ्घदासगणि (भाष्य) ६४०० ३७. | दशाश्रुतस्कन्ध ८९६ /- ? - (चूणि) २२२५ ३८. | जीतकल्प * १३० सिद्धसेनगणि (चूणि) १००० ३९. | महानिशीथ ४५४८ ४०. आवश्यक १३० हरिभद्रसूरि २२००० ४१.| ओघनियुक्ति नि.१३५५ / द्रोणाचार्य [(?)७५०० पिण्डनियुक्ति * नि. ८३५ मलयगिरिसूरि ७००० ४२. | दशवैकालिक ८३५ हरिभद्रसूरि ७००० ४३. | उत्तराध्ययन २००० शांतिसूरि १६००० |४४. नन्दी ७०० मलयगिरिसूरि ७७३२ |४५. | अनुयोगद्वार २००० मलधारीहेमचन्द्रसूरि ५९०० नोंध:(१) 6. ४५ मागम सूत्रोमा वर्तमान राणे ५i. १ थी ११ अंगसूत्रो, १२ थी २३ उपांगसूत्रो, २४थी33 प्रकीर्णकसूत्रो उ४थी 3८ छेदसूत्रो, ४० थी ४3 मूळसूत्रो, ४४-४५ चूलिकासूत्रोन नामे प्रसिद्ध छे. (૨) ઉક્ત શ્લોક સંખ્યા અમે ઉપલબ્ધ માહિતી અને પૃષ્ઠ સંખ્યા આધારે નોંધેલ છે. જે કે તે સંખ્યા માટે મતાંતર તો જોવા મળે જ છે. જેમકે આચાર સૂત્રમાં ૨૫૦૦, ૨૫૫૪, ૨૫૨૫ એવા ત્રણ શ્લોક પ્રમાણ જાણવા મળેલ છે. આવો મત-ભેદ અન્ય સૂત્રોમાં પણ છે.. (3) 6 वृत्ति- ना छे ते ४३२. संपान भुमना छ. ते सिवायनी ५९ वृत्ति-चूर्णि साहित्य भुद्रित अमुद्रित अवस्थामा सम्छे ४. (४) गच्छाचार भने मरणसमाधि नविय चंदावेज्झय भने वीरस्तव प्रकीर्णक भावे छ. सभे “आगमसुत्ताणि" मां भूण ३थे भने 'भागमही५'मा अक्षरश: ગુજરાતી અનુવાદ રૂપે આપેલ છે. તેમજ ગીતજન્ય જેના વિકલ્પ રૂપે છે એ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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