Book Title: Agam Sutra Satik 12 Auppatik UpangSutra 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 135
________________ ३५७५ उपासकदशा (૪૫ આગમ મૂળ તથા વિવરણનું શ્લોક પ્રમાણદર્શક કોષ્ટક) क्रम | आगमसूत्रनाम मूल वृत्ति-कर्ता वृत्ति श्लोक प्रमाण श्लोकप्रमाण | १. आचार २५५४ शीलाझाचार्य १२००० | २. सूत्रकृत २१०० शीलानाचार्य १२८५० ३. स्थान ३७०० अभदेवसूरि १४२५० | ४. समवाय १६६७ अभयदेवसूरि ५. भगवती | १५७५१ | अभयदेवसरि १८६१६ ६. ज्ञाताधर्मकथा ५४५० अभयदेवसूरि ३८०० ८१२ अभयदेवसूरि ८०० अन्तकृद्दशा ९०० अभयदेवसूरि ४०० ९. अनुत्तरोपपातिकदशा १९२ अभयदेवसूरि १०० १०. प्रश्नव्याकरण १३०० | अभयदेवसूरि ५६३० ११. विपाकश्रुत १२५० अभयदेवसूरि ९०० १२. औपपातिक ११६७ | अभयदेवसरि ३१२५ १३. राजप्रश्निय २१२० मलयगिरिसूरि ३७०० | १४. जीवाजीवाभिगम ४७०० | मलयगिरिसूरि १४००० |१५. प्रज्ञापना ७७८७ मलयगिरिसूरि १६००० [१६. सूर्यप्रज्ञप्ति २२९६ मलयगिरिसूरि ९००० (१७. चन्द्रप्रज्ञप्ति २३०० मलयगिरिसूरि ९१०० १८. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ४४५४ शान्तिचन्द्रउपाध्याय १८००० १९थी निरयावलिका ११०० चन्द्रसूरि ६०० २३. (पञ्च उपाङ्ग) २४. चतुःशरण ८० विजयविमलयगणि | (?) २०० २५. आतुर प्रत्याख्यान १०० गुणरलसूरि (अवचूरि) (१) १५० २६. महाप्रत्याख्यान १७६ आनन्दसागरसूरि (संस्कृतछाया) १७६ | २७. भक्तपरिज्ञा २१५ आनन्दसागरसूरि (संस्कृतछाया) २८. तन्दुल वैचारिक ५०० विजयविमलगणि (?) ५०० २९. संस्तारक १५५ गुणरल सूरि (अवचूरि) ११० गच्छाचार १७५ | विजयविमलगणि १५६० |३१. गणिविद्या १०५ | आनन्दसागरसूरि (संस्कृतछाया) २१५ ३०. गच्छा १०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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