Book Title: Agam Sutra Satik 01 Aachar AngSutra 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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श्रुतस्कन्धः - १, अध्ययनं-१, उपोद्घातः नि. [२०] संजोगे सोलसगंसत्तय वण्णा उनवय अंतरिणो ।
एए दोविविगप्पाठवणा बंभस्स नायव्वा दृ. संयोगेन षोडश वर्णाः समुत्पन्नाः, तत्र सप्त वर्णा नव तु वर्णान्तराणि, एतच्च वर्णवर्णान्तरविकल्पद्वयं स्थापनाब्रह्मेति ज्ञातव्यम् ॥ .
___-साम्प्रतं पूर्वसूचितं वर्णत्रयमाह-यदि वा प्रागुद्दिष्टान् सप्त वर्णानाहनि. [२१] पगई चलक्चगानंतरे यते हुंति सत्तवण्णा उ ।
आनंतरेसु चरमोवण्णो खलु होइ नायव्यो वृ. प्रकृतयश्चतः-ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यशूद्राख्या आसामेव चतसृणामनन्तरयोगेन प्रत्येक वर्णत्रयोत्पत्तिः, तद्यथा-द्विजेन क्षत्रिययोषितोजातःप्रधानक्षत्रियः संकरक्षत्रियो वा, एवंक्षत्रियेण वैश्ययोषितो वैश्येन शूधाः प्रधानसंकरभेदौ वक्तव्यावित्येवं सप्त वर्णा भवन्ति, अनन्तरेषु भवा आनन्तरास्तेषु योगेषु चरमवर्णव्यपदेशो भवति-ब्राह्मणेन क्षत्रियायाः क्षत्रियो भवतीत्यादि, स च स्वस्थाने प्रधानो भवतीतिभावः ।। इदानीं वर्णान्तराणां नवानां नामान्याह - नि. [२२] अबदुग्गनिसाया य अजोगवं मागहायसूयाय।
खत्ताय विदेहाविय चंडजाला नवमगा हुति वृ.अम्बष्ठ उग्रः निषादः अयोगवंमागधः सूतः क्षत्ता विदेहः चाण्डालश्चेति ।। कथमेते भवन्तीत्याह-- नि. [२३] एगंतरिए इणमो अंबट्ठो चेव होइ उग्गोय।
विइयंतरिअनिसाओ परासरंतं च पुण वेगे नि. [२४] पडिलोमे सुद्दाई अजोगवं मागहो य सूओ ।
एगंतरिए खत्ता वेदेहाचेव नायव्वा नि. [२५] बितियंतरे नियमा चण्डालो सोऽवि होइ नायब्वो।
अनुलोमे पडिलोमे एवं एए भवे भेया ___-आआसामर्थो यन्त्रकादवसेयः, तच्चेदम् - ब्रह्मपुरुषः वैश्या स्त्री अम्बष्ठः क्षत्रियः पुरुषः शूद्री स्त्री ब्राह्मणः पुरुषः शूद्री स्त्री निषादः परासरो वा शूद्रः पुरुषः
वैश्या स्त्री
अयोगवम्
क्षत्रिया स्त्री मागधः क्षत्रियः पुरुषः
ब्राहास्त्री
सूतः शूद्रः पुरुषः क्षत्रिया स्त्री क्षत्ता वैश्ययुरुषः ब्राह्मस्त्री वैदेहः शूद्रपुरुषः ब्राह्मस्त्री चाण्डालः
उग्रः
वैश्यपुरुषः
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