Book Title: Agam Sahitya me Puja Shabda ka Arth Author(s): Dalsukh Malvania Publisher: Z_Rajendrasuri_Janma_Sardh_Shatabdi_Granth_012039.pdf View full book textPage 4
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ पूयण कामसूत्रकृतांग (1-4-1-26) में गाथा है कि बालस्स मंदयं बीयं जं कडं अवजाणइ भुज्जो / दुगुणं करेइ से पावं पूयणकामो विसन्नेसी / / 26 // प्रस्तुत गाथा की टाका में आ० शीलांक लिखते हैं कि-"किमर्थमपलपति इत्याह-पूजन-सत्कार पुरस्कारस्तत्कामः तदभिलाषी मा मे लोके अवर्णवादः स्यादित्यकार्यं प्रच्छादयति / -आगमो० पृ० 114, दिल्ली पृ० 5-76 पूयणट्ठिसूत्रकृतांग (1-10-13) में गाथा है कि सुद्ध सिया जाए न दूसएज्जा अमुच्छिए ण य अज्झोववन्ने / __धितिमं विमुक्के ण य पूयणट्ठी, न सिलोगगामी य परिव्वएज्जा // 23 // उक्त गाथा की टीका में आ० शीलांक लिखते हैं कि-"तथा संयमे धृतिर्यस्यासौ धृतिमान्, तथा स बाह्याभ्यन्तरेण ग्रन्थेन विमुक्तः, तथा पूजनं वस्त्र-पात्रादिना, तेनार्थः पूजनार्थः स विद्यते यस्यासौ पूजनार्थी, तदेवंभूतो न भवेत्, तथा श्लोक : "श्लाघा कीर्तिस्तद्गामी न तदभिलाषुकः परिब्रजेतदिति / कीर्त्यर्थी न काञ्चनक्रियां कुर्यादित्यर्थः // " -आगमो० पृ० 165, दिल्ली पृ० 130 स्पष्ट है कि अंग आगमों में पूजा शब्द का मुख्य अर्थ पूज्य के अंगों की पूजा ऐसा नहीं है किन्तु पूज्य को आवश्यक वस्तुओं का समर्पण है / अतः पूजा एवं दान में क्या भेद है ? वह भी यहाँ विचारणीय है / पूज्य के पास जाकर वस्तुओं का अर्पण पूजा है जबकि पूज्य स्वयं दाता के पास जाकर जो ग्रहण करता है, वह दान है / इस प्रकार पूजा एवं दान में भेद किया जा सकता है / पूजा शब्द के स्थान पर अर्चा शब्द का प्रयोग ज्ञाताधर्मकथा में द्रौपदी की कथा में किया गया है। समग्र अंग आगमों में यह एक ही उल्लेख जिन प्रतिमा का अर्चा के विषय में किया गया है यह भी उल्लेखनीय है। पाठ है "जिणपडिमणं अच्चणं करेइ"-नाया० 1-16-751 (जैन विश्व भारती लाडनूं की आवृत्ति)। आगमोदय समिति की नायाधम्मकहा मूल में पाठ अधिक है किन्तु टीका में कहा गया है कि उपरोक्त पाठ के अनुसार संक्षिप्त पाठ भी मिलता है। 26 | चतुर्थ खण्ड : जैन दर्शन, इतिहास और साहित्य www.jainePage Navigation
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