Book Title: Agam Path Samshodhan Ek Samasya Ek Samadhan Author(s): Dulahrajmuni Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 3
________________ आगम-पाठ संशोधन : एक समस्या, एक समाधान ६११ . .-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-. -.-.-.-.-. -. -.-. -.-. -. -. २. चक्खूकंतेहि रूवेहि, पेम्मं णाभिणिवेसए। दारुण कक्कसं रूवं, चक्खुणा अहियासए । ३. घाणकतेहि गन्धेहि, पेम्मं णाभिगिवेसए। दारुणं कक्कसं गंध, घाणेणं अहियासए । ४. जीइकतेहिं रसेहि, पेम्म णाभिणिवेसए । दारुणं कक्कसं रसं, जोहाए अहियासए । ५. सुहफासेहिं कतेहिं, पेम्म गाभिणिवेसए। दारुणं कक्कसं फासं, कारणं अहियासए । मज्झिला अट्ठ विसया गहिता भवंति । एवं इहविमहंत सुतं मा भवं उत्ति आदि अन्तग्गहिता।' (ख) लिपिकर्ता द्वारा कृत संक्षेपीकरण-दशवकालिक सूत्र १३३, ३४ में श्लोक इस प्रकार है एवं उदओल्ले ससिणिद्ध, ससरक्खे मट्टिया ऊसे । हरियाले हिंगुलए, मणोसिला अंजणे लोणे॥ गेरुय वणिय सेडिय, सोरठ्ठिय पिट्ठ कुक्कुस कए य । उक्कट्ठमसंसठे संसढे चेव बोधव्वे ।। टीकाकार के अनुसार ये दो श्लोक हैं । चूणि में इनके स्थान पर सत्रह श्लोक हैं । टीकाभिमत श्लोकों में 'एव' और 'बोधव्व' ये दो शब्द जो हैं वे इस बात के सूचक हैं कि ये संग्रह श्लोक हैं। जान पड़ता है कि पहले ये श्लोक भिन्न-भिन्न थे, फिर बाद में संक्षेपीकरण की दृष्टि से उनका थोड़े में संग्रहण कर लिया गया। यह कब और किसने किया ? इसकी निश्चित जानकारी हमें नहीं है । इसके बारे में इतना ही अनुमान किया जा सकता है कि यह संक्षेपीकरण चूणि और टीका के निर्माण का मध्यवर्ती है और लिपिकारों ने अपनी सुविधा के लिए ऐसा किया है। संक्षेपीकरण से होने वाले विपर्यय के दो उदाहरण ये हैं(१) ज्ञातासूत्र के सोलहवें अध्ययन का १५३वा सूत्र प्रतियों में इस प्रकार हैंसकोरेह सेयचामर हय-गय-रह-महया-भउचउभरेण जाव परिक्खिता यहाँ 'जाव' को कितने गलत स्थान पर रखा है। यह पूरे पाठ के सन्दर्भ में ज्ञात हो जाता है। पूरा पाठ इस प्रकार है सकोरेंह-मल्लदामेणं छत्तणं धरिज्जमाणेण सेयवरचामराहि बी इज्जमाणा हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडा महया भउ-भउगर-रहपकर-दिद-परिक्खित्ता......। (२) इसी सूत्र के आठवें अध्ययन का ४५वां सूत्र प्रतियों में इस प्रकार है 'कणगामईए जाव मत्थयछिड्डाए।' यहाँ जाव शब्द अस्थान-प्रयुक्त है। इसके स्थान पर “मत्थयछिड्डाए जाव पडिमाए'-ऐसा होना चाहिए । पूरा पाठ इस प्रकार है कणगामईए मत्थयछिड्डाए पउमुप्पल-पिहाणाए पडिमाए...." पाठ-परिवर्तन के मूल कारणों का मैंने जो निर्देश दिया है, उसके उदाहरण आगमों में हमें प्राप्त है। ऊपर मैंने लिपि-दोष और संक्षेपीकरण के कारण होने वाले पाठभेदों का नामोल्लेख किया है। इसी प्रकार दृष्टिदोषके कारण पाठों का छूट जाना या स्थानान्तरित हो जाने के उदाहरण भी मिलते हैं। १. निशीथभाष्य चूणि, भाग ३, पृ० ४८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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