Book Title: Agam Path Samshodhan Ek Samasya Ek Samadhan
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 7
________________ १५४ एवं वृत्ता समाणी ८।१३५ सक्कं १६७० गंधणं ५।४० अणगारसहस्सेण सद्धि ८।७४ निव्वोलेमि ७७५ तुमं णं जा ८७२ भुमरासि ७२ कोरिया १६७ संसारियासु १०२१ परभा ८। ३५ जम्मणुस्सर्व ८।१८ सो उ १२०३१ जा २०७१ गाि १३१७ मत्तछप्पय १२।१३ ईसर २. आचारांग ६।७२ आयरिय-पदेसिए ६।७३ दइया ६६ सिलए ६/६६ वीरो ८६१ णिस्सेय सं १८ आसीने पोलिस १।२५ सोयिं २।१३४ कासं कसे २।१५७ दिट्ठ-पहे २८ वीरे ३।३७ दिट्ठ भए ३६२ सहिए दुक्खमसाए २०७७ उवाही ४।२५ पावादुया ५२६६ पनीबाहरे Jain Education International के स्थान पर एवं व सक्का गंधोद्ध एणं, गंधुदएणं, गंधदूएणं सहस्सेणं अगगाराणं, सहस्सेणं अणगारेणं । निच्छोल्लेमि " ܕܕ " " 31 " आगम- पाठ संशोधन एक समस्या, एक समाधान " " 33 " 33 " 37 " 23 37 21 " " دو " " " " तुमं णं जाव " मुभसिरं संभलविर दुध कुम् कोटिकिरियाण संचारिया परिब्भमंते, परब्भमंते, परब्भए । जम्मणं सव्वं जीवो, एसो । बिज्जा इच्छामि महच्छप्पय राईसर आरिय- देसिए चियत्ता लोए धीरो फिस्सेस, निस्सेसिय उदासीणो अणेलिसो तिन्नोहसि विसोत्तियं, विजहित्तु पुब्व संजोगं कामं कामे दिल-भवे धीरे विहे सहिते धम्ममादाय उवही समणा माहणा पलिबहिरे, पलिबाहरे, बलिबादिरे । ६१५ प्रस्तुत विवरण के सन्दर्भ में आगम- पाठों की वस्तुस्थिति का सही-सही ज्ञान हो जाता है। सत्य का शोधक अत्यन्त नम्र होता है । वह शोध करता हुआ नए-नए खड़ा नहीं रहता । एक-एक बिन्दु को पार कर वह सत्यों का आत्मसात् करता जाता है। वह एक ही बिन्दु पर सारे समुद्र को तैर जाता है। यदि वह एक बिन्दु पर पहुंचकर For Private & Personal Use Only HIBIS -O www.jainelibrary.org.

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