Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra
Author(s): Abhayshekharsuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 18
________________ ।। णमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महइमहावीरवद्धमाणसामिस्स ।। ॥ णमोऽत्थु णं अणुओगधराणं थेराणं ।। अणुओगद्दाराई। णमो अरिहंताणं ॥ णमो सिद्धाणं ।। णमो आयरियाणं ॥ णमो उवज्झायाणं ॥ णमो लोए सव्वसाहूणं ।। एसो पंचनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं ।। (सू० १) नाणं पंचविहं पण्णत्तं । तंजहा- आभिणिबोहियणाणं १, सुयणाण २, ओहिणाणं ३, मणपज्जवणाणं ४, केवलणाणं ५ । आचार्यप्रवर मलधारिश्रीहेमचन्द्रसूरिविरचिता वृत्तिः। ऐं नमः । श्रीवीतरागाय नमः ॥ सम्यक्सुरेन्द्रकृतसंस्तुतिपादपद्ममुद्दामकामकरिराजकठोरसिंहम् । सद्धर्मदेशकवरं वरदं नतोऽस्मि वीरं विशुद्धतरबोधनिधिं सुधीरम् ।।१।। अनुयोगभृतां पादान् वन्दे श्रीगौतमादिसूरीणाम् । निष्कारणबन्धूनां विशेषतो धर्मदातृणाम् ।।२।। यस्या: प्रसादमतुलं संप्राप्य भवन्ति भव्यजननिवहाः । अनुयोगवेदिनस्तां प्रयत: श्रुतदेवतां वन्दे ।।३।। इहातिगम्भीरमहानीरधिमध्यनिपतितानर्घ्यरत्नमिवातिदुर्लभं संप्राप्य मानुषं जन्म, ततोऽपि लब्ध्वा त्रिभुवनैकहितश्रीमज्जिनप्रणीतबोधिलाभम्, समासाद्य विरत्यनुगुणं परिणामम्, प्रतिपद्य चरणधर्मम्, अधीत्य विधिवत् सूत्रम्, समधिगम्य तत्परमार्थम्, विज्ञाय स्व-परसमयरहस्यम्, तथाविधकर्मक्षयोपशमसंभविनीं चावाप्य विशदप्रज्ञां जिनवचनानुयोगकरणे यतितव्यम्, तस्यैव ॥ ऐ नमः ।। ।। श्रीमातगसिद्धायिकापरिपूजिताय श्रीवर्धमानस्वामिने नमः ।। ।। श्रीगौतम-सुधर्मादिगणभृद्भ्यो नमः ।।। || श्रीचूर्णिकृद्-हरिभद्र-हेमचन्द्रसूरिवृत्तिकृदभ्यो नमः ।। ।। श्रीविजयप्रेम-भुवनभानु-जयघोष-धर्मजित-जयशेखरसूरिसदगुरुभ्यो नमः ।। वीरं गणधरान् नत्वा भुवन-धर्मजित्-जयान्। वाग्देवीं चानुयोगे हि टिप्पणी रच्यते मया ।।१।। * श्रीवीरं जिनं गौतमादिगणधरान भुवनभानु-धर्मजित-जयशेखरसूरीन स्वगुरून वाग्देवीं च नत्वा श्रीमन्मलधारिहेमचन्द्रसूरिसन्दृब्धवृत्तियुतानुयोगद्वारसूत्रविषयिणी टिप्पणी मया(= विजयअभयशेखरसूरिणा)रच्यत इत्यर्थः । Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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