Book Title: Agam 44 Chulika 01 Nandi Sutra
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 111
________________ दसचोइस अट्ट द्वा] रसेव न य कत्थइ निम्माओ नाणवररयणदिप्पंत नाणंमि दंसणंमि अ निमित्ते अत्थसत्थे अ नियमूसियकणयसिलायल निव्वुइपहसासणयं नेरइयदेवतित्थंकरा य पढमित्थ इंदभूई परतित्थियगहपहनास० पुठं सुणेइ सई पुवं अदिट्ठमस्सुअ० बारस इक्कारसमे बार भणगं झरगं भदं घिइवेलापरिगयस्य भई सव्वजगुज्जोयगस्स भदं सीलपडागूसियस्स भरनित्थरणसमत्था भरहम्मि अद्धमासो भरहसिलपणिय भरहसिलमिंढ भावमभावा हेऊमहेउ भासासमसेढीओ भूयहिभप्पगन्भे वंदेऽहं मणपज्जवनाणं पुण ८२ | महुमित्थमुदिके | मंडिअमोरियपुत्ते मिउमदवसंपन्ने मूझं हुंकारं वा वड्ट वायगवंसो वरकणगतवियचंपग. विमवनयपवरमुणिवर. | विमलमणतयधम्म सम्मदंसणवरवर सव्यवहुअगणिजीवा संखिज्जमि उ काले । संजमतवतुंबारयस्स संवरवरजलपगलिय० सावगजणमहुअरि० सा समा० जाणिआ सौआ साडी दीहं च सुकुमालकोमलतले सुत्तत्थो खलु पढमो सुमुणियनिच्चानिच्चं सुस्सूसइ पडिपुच्छइ सुहम्मं अग्गिवेसाणं सुहुमो अ होइ कालो सेलघणकुडग हत्थंमि मुहुत्ततो हारियगुत्तं साई ५८ | हेरण्णिए करिसए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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