Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai

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Page 12
________________ 10.055555555555明 (७१) ओहनिज्जतिस 明$$$$$$$FFFFORE 555g E9O$$$$$贝贝乐乐明明明明明明明明明明明明明 乐乐乐乐乐乐共乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐国乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐%乐乐乐乐% य गत्तिणंतगउल्लत्तलिगाइडेवणया।॥४०॥जह अंतरिक्खमुदए नवरि निअंबे य वणनिगुंजे य । ठाणं सभए पाउण घणकप्पमलंबमाणं तु ॥४॥ तिविहो वणस्सई खलु परित्तऽणतो थिराथिरेक्केक्को । संजोगा जह हेठ्ठा अक्कंताई तहेव इह ||शा तिविहा बेदिय खलु थिरसंघयणेयरा पुणो दुविहा । अर्कताई य गमो जाव उ पंचिंदिआ नेआ ||३|| पुढविदए य पुढविए उदए पुढवि तस वाल कंटा य । पुढविवणस्सइकाए ते चेव उ पुढबिए कमणं ॥४|| पुढवितसे तसरहिए निरंतरतसेसु पुढविए चेव । आउवणस्सइकाए वणेण नियमा वणं उदए ।।५।। तेऊवाउविहूणा एवं सेसावि सव्वसंजोगा। नच्चा विराहणदुगं वज्जतो जयसु उवउत्तो ||६|| सव्वस्थ संजमं संजमाउ अप्पाणमेव रक्खिज्जा (प्र० क्खंतो) । मुच्चइ अइवायाओ पुणो विसोही न याविरई ॥७॥ संजमहेजें देहो धारिज्जइ सो कओ उ त्तदभावे ? । संजमफाइनिमित्तं च देहपरिपालणाइठ्ठा ।।८॥ चिक्खल्लबालसावयसरेणुपंटयतणे बहुजले अ।लोगोऽवि नेच्छइ पहे कोणु विसेसो भयंतस्स? ॥९।। जयणमजयणं च गिही सचित्तमीसे परित्तऽणंते य । नवि जाणंति न यासिं अवहपइण्णा अह विसेसो ।।५०|| अविअ जणो मरणभया परिस्समभया व ते विवजेइ । ते पुण दयापरिणया मोक्खत्थमिसी परिहरंति ॥१३॥ अविसिळूमिवि जोगंमि बाहिरे होइ विहुरया इहरा । सुद्धस्स उ संपत्ती अफला जे देसिआ समए ।।२।। एक्कमिबि पाणिवहमि देसिअं सुमहदंत्तरं समए । एमेव निज्जरफला परिणामवसा बहुविहीआ॥३|| जे जत्तिया य हेऊ भवस्स ते चेव तत्तिआ मुक्खे । गणणाईया लोगा दुण्हवि पुण्णा भवे तुल्ला ॥४॥ इरिआवहमाईआ जे चेव हर्वलि कम्मबंधाय । अजयाणं ते चेव उजयाण निव्वाणगमणाय ।।५।। एगंतेण निसेहो जोगेसु न देसिओ विही वावि । दलियं पप्प निसेहो होज्ज विही वा जहा रोगे॥६॥ जंमि निसेविज्जते अइआरो होजा कस्सइ कयाइ। तेणेव य तस्स पुणो कयाइ सोही हवेज्जाहि ||७|| अणुमित्तोऽवि न कस्सइ बंधो परवत्थुपच्चओ भपिाओ। तहविय जयंति जइणो परिणामविसोहिमिच्छंता ॥८॥ जो पुण हिंसाययणेसु वट्टई तस्स नणु परीणामो। दुट्टो न य तं लिंगं, होइ विसुद्धस्स जोगस्स ||९|| तम्हा सया विसुद्धं परिणाम इच्छया सुविहिएणं । हिंसाययणा सव्वे परिहरियव्वा पयत्तेणं ।।६०॥ वज्जेमित्ति परिणओ संपत्तीए विमुच्चई वेरा। अविहंतोऽवि न मुच्चइ किलिठ्ठभावोत्ति वा तस्स ||१|| पढमबिइया गिलाणे तइए सण्णी चउत्थ साहम्मी । पंचमियंमि य वसही छठे ठाणठ्ठिओ होइ ।।२।। एहिअपारत्तगुणा दुन्नि य पुच्छा दुवे य साहम्मी । तत्त्थेक्केक्का दुविहा चउहा जयणा दुहेक्केक्का ।।३।। पडिदारगाहा । इहलोइआ पवित्ती पासणया तेसि संखडी सड्ढो । परलोइआ गिलाणे चेइय वाई यपडिणीए ।।४।। अविहीपुच्छा अत्थित्थ संजया ? नत्थि. तत्थ समणीओ। समणीसु अ ता नत्थी संका य किसोरवडवाए ||५|| सड्ढेसु चरिअकामो संकाचारी य होइ सड्ढीसु । चेइयघरं व नत्थिह तम्हा उ विहीइ पुच्छेज्जा ॥६|| गामदुवारब्भासे अगडसमीवे महाणमज्झे वा । पुच्छेज्ज सयंपक्खा विआलणे तस्स परिकहणा ||७|| निस्संकिअ थूभाइसु काउं गच्छेज्ज चेइअघरं तु । पच्छो साहुसमीवं तेऽवि अ संभोइया तस्स ।।८।। निक्खिविउं किइकम्मं दीवणऽणाबाह पुच्छण सहाओ । गेलण्ण विसज्जणया अविसज्जुवएस दावणया ॥९॥ पुणरवि अयं खुभिज्जा अयाणगा मो स भणिज्ज संचिक्खे । उभओऽवि अयाणंता वेज्जं पुच्छंति जयणाए।।७०|| गमणे पमाण उवगरण सउण वावार ठाण उवएसो। आणण गंधुदगाई उठ्ठमणुढे अजे दोसा॥१॥ पढमावियारजोगं नाउंगच्छे बिइज्जए दिण्णे । एमेव अण्णसंभोइयाण अण्णाइ वसहीए।।२।। एगागि गिलाणंमि उ सिठूतो किं न कीरई वावि ? | छगमुत्तकहणपाणगधुवणऽत्थर तस्स के नियगं वा ।।३।। सारवणं साहल्लय पागड धुवणे य सुइ समायारा । अइबिभले समाही सहुस्स आसास पडिअरणं ॥४॥ सयमेव दिठ्ठपाढी करेइ पुच्छइ अयाणओ वेज । दीवण दव्वाइंमि अ उवएसो जाव लंभो उ॥५॥ कारणिअ हठ्ठ पेसे गमणऽणुलोमेण तेण सह गच्छे । निक्कारणिअ खरंटण बिइज्ज संघाडए गमणं ।।६।। समणिपवेसि निसीहिअ दुवारवज्जण अदिठ्ठ परिकहणं । थेरीतरूणिविभासा निमंतऽणाबाहपुच्छा य॥७॥ सिळूमि सहू पडिणीयनिग्गहं अहव अण्णहिं पेसे। उवएसो फ दावणया गेलन्ने वेज्जपुच्छा अ ||८|| तह चेव दीवण चउक्कएण अन्नत्थ वसहि जा पढमा । तह चेवेगाणीए आगाढे चिलिमिली नवरं ।।९।। निक्कारणिअं चमढण + कारणिअं नेइ अहव अप्पाहे । गमणित्थि मीससंबंधिवज्जिए असइ एगागी ।।८०|| एगबहू समणुण्णाण वसहीए जो य एग अमणुन्नो । अमणुन्नसंजईण य अण्णहिं एक्वं चिलिमिलीए॥१| विहिपुच्छाएँ पवेसो सण्णिकुले चेइ पुच्छ साम्मी। अन्नत्थ अत्थि इह ते गिलाणकज्जे अहिवडंति ।।२।। सव्वपि न घेत्तन्वं निमंतणे जं तहिं WESTRAPPLEncurrencLEEEEEEEEE श्री आगमगुणमंजूषा-१५७९455555555555555555555555555OORK 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明OTC FO

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