Book Title: Agam 41B Ohnijjutti Mulsutt 02B Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विनिमुति - (५४) ॥५३२।।-632 ५३३1-593 ॥५३४||-534 ॥५३५/-635 11५३६-538 ॥५३८-637 ।।५३७1-538 ॥५३९||-639 ॥५४०11-540 (१७r) पुढवी आउ वणस्सइ तिविहं सचित्तमक्खियं होइ अचित्तं पुणदुविहं गाहियमियरेय भयणाउ (५७५) सुक्केण सरखेणमक्खियमल्लेण पुढविकाएणं सबपि मक्खियंतंएतो आउंमि वोच्छामि (५७१) पुरपछकम्म ससिणिझुल्ले चत्तारि आउभेयाओ उक्किट्टरसालित्तं परित्तऽनंतं महिरुहेसु (५७७) सेसेहि उकाएहिं तीहिवितेऊसमीरणतसेहिं सहितं मीसंवा न मखितं अत्यि उल्लंवा (५७८) सचित्तमक्खियमि उहत्ये मते य होइ चउमंगो आइतिए पडिसेहो चरिमे भंगे अनुनाउ (५७९) अचित्तमक्खियमि उचउसुवि भंगेसु होइ मयणा उ अगरहिएण उगहणं पडिसेहो गरहिए होइ (५८०) संसञ्जिमेहिं वनं अगरहिएडिपि गोरसदवेहिं महुघयतेल्ल गुलेहि य मा मच्छिपिकीलियाधाओ (५८१) मंसवससोणियासव लोए वा गरहिएहिं विवझेजा उभओऽवि गरहिएहिं मुत्तुचारेहिं छित्तंपि (५८२) सधित्तमीसएसु दुविहं काएसुहोइ निखित्तं एकेक्कं तं दुविहं अनंतर परंपरं चैव (१८३) पुढवीआउक्काएतेऊवाऊवणस्सइतसाणं एक्केक्क दुहाथऽणंतर परंपरऽगणिमि सत्तविहा (५८४) सचित्तपुढविकाए सचित्तोचेव पुढवि निक्खितो आऊतेउवणस्सइसमीरणतसेसुएमेव (५८५) एमेव सेसायाणवि निक्खेवो होइ जीवकायकाएK एक्केक्को सहाणे परठाणे पंच पंवेद (५८६) एमेवमीसएसुवि मीसाण सचेयणाण निक्खेदो मीसाणं मीसेतु य दोहंपिय होइ अमित्ते (५८७) जत्य उसचितमीसे चउभंगो तत्य चऊसुवि अगिझं तं तु अनंतर इयरं परितऽणंतंच वणकाए (५८८) आहवणसचित्तमीसो उएगओ एगओ उ अनित्तो एत्यवि चउक्कभंगो तत्याइतिए कहा नस्थि (५८१) जंपुण अचित्तदव्यं निक्खिप्पइ चेयणेसुमीसे दव्वे सु तहिं मागणा उडणमो अनंतरपरंपरा होइ (५९०) ओगाहिमायणंतरं परंपरं पिटरगाइ पुढवीए नवणीयाइ अनंतर परंपरं नावामाईसु (५७) विज्झायमुम्मुरिंगालमेव अप्पत्तपत्तसमजाले पोक्कत लीणे सतदुर्ग जंतोलित्ते य जयणाए ||५४१11-541 ||५||-342 ॥५४३||-643 ॥५४॥-544 ॥५४५||-548 ॥५४६||-546 ॥५४७||-547 ॥५४८11-548 ॥५४९||-549 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52