Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 15
________________ श्री आवश्यक चूर्णां ज्ञानानि ॥ १३ ॥ इमाणि जिभिदियस्स उम्मदेहादीण परूवणा, से जहा णामए के पुरिसे खुरुप्प ठाणसंठिएणं जिग्मिदिएणं अव्वत्तं रसमासाएज्जा, ण पुण जागह-किमेस खीररसो? उदाहु अन्नस्स कस्मति दव्वस्मति, सेस जहा सोइंदियस्स तहेव अहीणमहरितं माणियन्वं । दार्णि फासिंदियस्स, से जहा णामए कर पुरिसे अणित्थंत्यसंठाणसंठिएणं फार्सिदिएण अव्बतं फार्स वेदिज्जा, न पुर्ण जाणइ-किमेस सप्पस्स फरिमो उदाहू उप्पलणालस्सति, मेसं जहा सोइंदियस्स । इमाणिं पोइंदियस्स, से जहा णामए के पुरिसे अय्वतं सुमिणं पासेज्जा, ण पुण जाणति - किंपि मए दिति, ततो अंतोमुहुत्तियं ईहं पविसति, तत्तो जाणति अंतोमुरोण जहा देवे मए दिट्ठोत्ति, ततो अवातो, ततो धारणं पडर, ततो धरेति खिज्जं अमखज्जं वा कालं, संखेज्जवासाउए संवेज्जं कालं, असंखे असंखे, एस णोईदियस्स अत्भोग्गहो । एयस्सऽवि वंजणोग्गहो णत्थिन्ति । एत्थ सीसो आहो एम सव्वन्य तरतमजोगो विज्जए, जहा पुदि उग्गहां ततो ईहा ततो अबाओ ततो धारणं, आयरिओ आह-कई ?, सीसो आह-जहा कोड़ कंचि पुरिसं सहसति पासिज्जा, तंमि उग्गहादयो जुगवमुप्पज्जेति, आयरिओ आह-तंमिचि अस्थि चैव, कई ?, जहा उप्पलपत्तसतंव कालणाणसं अस्थि, अहवा सुडुमत्तणेण णज्जए जहा एककालमेव विद्धंति, ण उत्र रिठे पचे अविद्धे हेल्लिस्स वेघो जुज्जए, एवं सहसन्ति दिट्ठे पुरिसे उग्गहादीगं तरतमजोगो अस्थि चैव न पुण कालस्स सुडुमचणेण जामितुं सकिज्जतित्ति || साणि य इंदियाणि काणिइ पत्तविमयाणि काणिवि अपत्तविसयाणि, कई ? पुर्वं सुणे स६० ॥२॥ पृटुं नाम फरिसितं जाहे तं सोइंदियं अणतेहिं सहयोग्गलेहिं पूरियं भवति तदा सुणे, जं पुण पासति तं अपुई, कई ?, जह पुई पासिज्जा तो अरिंग दण णयणाणं दाहो भत्रेज्जा, सूलं वा दट्ठूण जपणाणं वेहो मवेज्जा | ** अवग्रहादी नो क्रमः प्राप्ताप्रांतविषयता ॥ १३ ॥

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