Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 14
________________ चूणों AL केस पुण एस सहे मवेज्जति?, ततो अंतोमुसिय अवार्य गच्छद, तंतो से उवमयं मवइ, ततो धारण पडा, ततो धारेति संखेज प्रतिषधिकतवा असंखजं पा कालं, संखज्जवासाउए संखेनं कालं असंखज्जयासाउए असंखज्ज कालं घरह, एसो सोइंदियबुग्गहो । एत्य मल सीसो चोदेति, जहा-इट्ठा साइंदियउग्गहो दुविहो भणिता, जहा- अत्योवग्गही वंजणग्गहो य, ण पुण एएसि विससो मणिसानानि तोचि, आयरिओ आह- जो कलंच्यापुष्फसठियस्स सोइंदियस्स सद्दपोग्गलहिं सह संजोगी एस सोइदियवंजणाग्गहो, अत्पोग्गहो | ॥१२॥ पुष जो सो सदो तेण कलंघुयापुष्फामिनिणा इंदियएणं जीवस्स उवणीओ, तस्स अत्यस्स जं सामण्णगहणं एस सोइंदिपजत्थोग्गहो । मच्याइ, अत्थोग्महस्म इहाअवायधारणातो अस्थि, पंजणोग्गहस्स पुण अवग्गणमेनमेव, महाप्रवायचारणाशी मि अवित्ति। दाणि चक्विदियस्स उग्गहादीणं परवणा भण्णति, से जहा णामए केइ पुरिसे पक्खिदिएण मसूरनचंदगसंठामसंठिएणं अबसर्व पासिज्जा, णो चेत्र णं जाणति-किं खाणु पुरिसोनि, एस एकसमतितो चक्खिदियउग्गहो, ततो अंतोमुहुत्तियं हिं पविसति, जहा-'किं पुण एतं खाणु होज्ज! उदाहपुरिसोसि', ततो सो अतोमुत्तियं अवार्य गच्छति, ततो से अवगयं भवति जहाखाणुमेयं, जो पुरिमोत्ति', ननो धारणं पडति, ततो घरोति संखेज्ज असंखज्ज वा कालं, संखेज्जवासाउए संलिज काले, असंखजवासाउए असंखेज्ज कालं, एस चम्खिदियअत्थोग्गहो, एपस्स पुण पक्खिदियस्स बंजणोग्गहो पत्थिचि । दाणि पाणिदियस्स उग्गहादीणि परूचेयवाणि. से जहाणामए कोई पुरिसे पाणिदिएणं अतिमुचगपुकचंदगठापसठिएणं अवचं गंध आचाएज्ज, ण पुण जाणइ कस्सेस गंधोत्ति, "किं उप्पलस्स! उदाहु अबस्स कस्सइ दबस्स! स इकसमइतो पाणिदियउग्गहो, एवं तेणेव कर्मण जहा सोइदियस्स, णवर पाणामिलावो माणियचो, अत्याग्नहर्वजणोग्गहविसेसोऽवि तहेव । SISESEASESSASUSax HARA

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