Book Title: Agam 29 Prakirnaka 06 Sanstarak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अणोअश्या ( यारा) । जम्मणभरणरहट्टे अणंतखुत्तो परिभमिओ ॥ ७ ॥ सुविहिअ ! अईयकालं अणंतकालं तु आगयगएणं । जम्भणमरणमणतं अणंतखुत्तो समणुभूओ ॥८॥नत्यि भयं मरणसमं जम्मणसरिसं न विजए दुक्खं जम्मणभरणायंकं छिंद ममत्त सरीराओ ॥९॥अन्नं इमं सरीरं अन्नो जीवत्ति निच्छयमईओ। दुक्खपरिकिलेसकरं छिंद० ॥१०० ॥ जावंति केइ दुक्खा सारीरा/ माणसा व संसारे पत्तो अणंतखुत्तो कायस्स ममत्तदोसेणं ॥१॥ तम्हा सरीरमाई सभितर बाहिरं निरवसेसं छिंद ममत्तं सुविहिअ! जइ इच्छसि उत्तमं ठाणं ॥२॥जगआहारो संघो सव्वो मह खमउ निरवसेसपिअहमविखमामि सुद्धो गुणसंघायस्स संघस्स ॥३॥ आयरिय उवझाए सीसे साहम्मिए कुलगणे य ।जे मे केइ कसाया सव्वे तिविहेण खामेमि ॥ ४ ॥ सव्वस्स समणसंघस्स भयवओ अंजलिं करिय सीसे सव्वं खमावइत्ता अहमविखामेमि सव्वस्स ॥५॥ सव्वस्स जीवरासिस्स भावओ धम्मनिहियनियचित्तो सव्वं| खमावइत्ता अहयंपि खमामि सव्वेसि ॥ ६ ॥ इय खामिआइआरो अणुत्तरं तवसमाहिमारूढो । पप्फोडतो विहरइ बहुविहवा (५० आयविवाहाकरं कम्म ॥७॥जं बद्धमसंखिजाहिं असुभभवसयसहस्सकोडीहिं । एगसमएण विहुणइ संथारं आरुहंतोय ॥८॥ इह तह विहारिणो से विग्धकरी वेयणा समुढेइ तीसे विझवणाए अणुसद्धिं दिति निजवया ॥९॥जइ ताव ते मुणिवरा आरोवियवित्थर अपरिकममा । गिरिपब्भारविलग्गा बहुसावयसंकडं भीमं ॥ ११० ॥ धीधणियबद्धकच्छ। अणुत्तरविहारिणो समक्खाया। सावयगदाढगयाविहु साहंती उत्तम अटुं ॥१॥किं पुण अणगारसहायगेहिं धीरेहिं संगयमणेहिं । नहु नित्थरिजइ इमो संथारो उत्तम | ॥श्री संस्तारक सूत्र पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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