Book Title: Agam 25 Prakirnaka 02 Atur Pratyakhna Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainand Pustakalay
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॥श्रीआउरपच्चक्खाण सूत्र।
देसिकदेसविरओ सम्महिटी मरिज जो जीवो। होइ बालपंडियमरणं जिणसासणे भणियं ॥१॥६४ पंच य अणुव्वयाई सत्त ३ सिक्खा ३ देसजइधम्मो सव्वेण व देसेण व तेण जुओ होई देसजई ॥२॥ पाणिवहमुसावाए अदत्त परदारनियमणेहिं चो अपरिमिइच्छाओऽविय अणुव्वयाई विरमणाई ॥३॥जंच दिसावेरमणं अणत्थदंडाउ जंच वेरमणी देसावगासियंपिय गुणव्वयाई भवे नाई॥४॥ भोगाणं परिसंखा सामाइयअतिहिसंविभागो यो पोसहविही य सव्वो चउरो सिक्खाउ वुत्ताओ ॥५॥आसुकारे मरणे अच्छिन्नाए जीवियासाए।नाएहि वा अमुक्को पच्छिमसलेहणमकिच्चा ॥६॥आलोइय निस्सालो सघरे चेवारुहित्तु संथारी जइ मरइ देसविरओ तं वुत्तं बालपंडिययं॥ ७॥ जो भत्तपरि-नाए उवक्कमो वित्थरेण निहिो। सो चेव बालपंडियमरणे नेओ जहाजुग्ग॥ ८॥ वेमाणिएसुकप्पोवगेसु नियमेण तस्स उववाओनियमा सिझइउकोसएण सो सत्तमंमि भवे ॥९॥इय बालपंडियं होइ मरणमरिहंतसासणे दिट्ठी इत्तो पंडियपंडियमरणं वुच्छं समासेणं॥१०॥इच्छामिणं भंते! उत्तमटुं पडिकमामि अईयं पडिक्कमामि अणागयं पडिकमामि
पच्चुप्पन पडि० कयं पडि० कारियं पडि० अणुमोइयं पडि० मिच्छतं पडि० असंजमं पडि० कसायं पडि० पावप्पओगं पडिकमामि, || জীমাতালকাতা মুমু
| पू. सागरजी म. संशोधित
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