Book Title: Agam 25 Prakirnaka 02 Atur Pratyakhna Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainand Pustakalay
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मरणं पडिच्छामि ॥२॥अकंडेऽचिरमभाविय ते पुरिसा मरणदेसकालमा पुवकयकम्मपरिभावणाए पच्छा परिवडंति ॥३॥ तम्हा|| चंदगविज्झं सकारणं उज्जुएण पुरिसेणी जीवो अविरहियगुणो कायव्वो मुक्खमगंमि ॥ ४॥ बाहिरजोगविरहिओ अभिंतरझाणजोगमल्लीणो। जह तंमि देसकाले अमूढसन्नो चयइ देहं ॥५॥तूण रागदोसं छित्तूणय अट्ठकम्मसंघायोजभणमरणरहट्ट भित्तूण भवा विमुच्चिहिति ॥ ६॥ एयं सव्वुवएसं जिणदिटुं सहहामि तिविहेणी तसथावरखेमकरं पारं निव्वाणमगस्सा ॥७॥न हु तमि देसकाले सक्को बारसविहो सुथक्खंयो।सव्वो अणुचिंतेउ धणियंपि समत्थचितेण॥८॥एगंमिवि जम्मि पए संवेगं वीयरायमग्गमि। गच्छइ नरो अभिक्खं तं मरणं तेणं मरियव्व।९।ता एगपि सिलोगं जो पुरिसो मरणदेसकालम्मिा आराहणोवउत्तो चिंततो राहगो होई | ॥६०॥ आराहणोवउत्तो कालं काऊण सुविहिओ सम्मी उक्कोसं तिन्नि भवे गंतूणं लहइ निव्वाणं॥ १॥ समणोत्ति अहं पढमं बीयं सव्वत्थं संजओमित्तिो सव्वं च वोसिरामी एयं भणियं समासेणं ॥ २॥ लद्धं अलद्धपुव्वं जिणवयण सुभासियं अभयभूयो गहिओ सग्गइमग्गो नाहं मरणस्स बीहेमि॥३॥धीरेणवि मरियव्वं काउरिसेणवि अवस्स मरियवीदुण्हंपि हु मरियव्वे वरं खुधीरतणे मरि। ४॥ सीलेणवि मरियव्वं निस्सीलेणवि अवस्स मरियव्वो दुण्हंपि हु मरियव्वे व खु सीलतणे मरि॥ ५॥ नाणस्स दसणस्स य सम्मत्तस्स य चरित्तजुत्तस्सोजो काही उवओगं संसारा सो विमुच्चिहिइ ॥६॥चिरउसियबंभयारी पप्फोडेऊण सेसयं कम्मोअणुपुव्वीइ विसुद्धो गच्छइ सिद्धिं धुयकिलेसो॥७॥निक्कसायस्स दंतस्स, सूरस्स ववसाइणो।संसारपरिभीयस्स, पच्चक्खाणं सुहं भवे ॥८॥एयं In श्रीआरपच्चक्याण सूत्र
| पू. सागरजी म. संशोधित
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