Book Title: Agam 25 Aturpratyakhyan Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 5
________________ आगम सूत्र २५, पयन्नासूत्र-२, 'आतुरप्रत्याख्यान' सूत्र [२५] आतुरप्रत्याख्यान पयन्नासूत्र-२- हिन्दी अनुवाद सूत्र-१ छ काय की हिंसा का एक हिस्सा जो त्रस की हिंसा, उसका एक देश जो मारने की बुद्धि से निरपराधी जीव की निरपेक्षपन से हिंसा, इसलिए और झूठ बोलना आदि से निवृत्त होनेवाला जो समकित दृष्टि जीव मृत्यु पाता है तो उसे जिनशासन में (पाँच मृत्यु में से) बाल पंड़ित मरण कहा है। सूत्र - २ जिनशासन में सर्व विरति और देशविरति में दो प्रकार का यतिधर्म है, उसमें देशविरति का पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत मिलाने से श्रावक के बारह व्रत बताए हैं। उन सभी व्रत से या फिर एक दो आदि व्रत समान उस के देश आराधन से जीव देशविरति होते हैं। सूत्र-३ प्राणी का वध, झूठ बोलना, अदत्तादन और परस्त्री का नियम करने से तथा ईच्छा परिणाम का नियम करने से पाँच अणुव्रत होते हैं। सूत्र-४ जो दिगविरमण व्रत, अनर्थदंड से निवर्तन रूप अनर्थदंड विरमण और देशावगासिक में तीनों मिलकर तीन गुणव्रत कहलाते हैं। सूत्र-५ भोग-उपभोग का परिमाण, सामायिक, अतिथि संविभाग और पौषध ये सब (मिलकर) चार शिक्षाव्रत कहलाते हैं। सूत्र-६ शीघ्रतया मृत्यु होने से, जीवितव्य की आशा न तूटने से, या फिर स्वजन से (संलेखना करने की) परवानगी न मिलने से, आखरी संलेखना किए बिनासूत्र -७ शल्यरहित होकर; पाप आलोचकर अपने घरमें निश्चय से संथारे पर आरूढ होकर यदि देशविरति प्राप्त करके मर जाए तो उसे बाल पंड़ित मरण कहते हैं । सूत्र-८ जो विधि भक्तपरिज्ञा में विस्तार से बताया गया है वो यकीनन बाल पंडित के लिए यथायोग्य जानना चाहिए। सूत्र-९ कल्पोपपन्न वैमानिक (बार) देवलोक के लिए निश्चय करके उसकी उत्पत्ति होती है और वो उत्कृष्ट से निश्चय करके सातवे भव तक सिद्ध होता है। सूत्र-१० जिनशासन के लिए यह बाल पंड़ित मरण कहा गया है, अब मैं पंड़ितमरण संक्षेप में कहता हूँ। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (आतुरप्रत्याख्यान) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 5Page Navigation
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