Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti View full book textPage 4
________________ श्रीमान् सेठ श्रीभैरोंदानजी सेठिया की संक्षिप्त जीवनी जैन समाज के महान स्तम्भ एवं अमूल्यरेत्न श्री भैरोदानजो सेठिया का सम्पूर्ण जीवन शिक्षा प्रसार एवं समाज सेवा में हि व्यतीत हुआ । युवक सा साहस, संतों के मदृश समभाव एवं उदार दानवीरता के गुणों की त्रिवेणो उनके स्वभाव का अंग थी । मानव जीवन को सार्थक बनाकर आपने सेवा और त्यागमय जीवन का आदर्श समाज के सन्मुख प्रस्तुत किया । आपका जीवन पूरा इतिहास है और आप द्वारा स्थापित " श्री अगरचन्द भैरोंदान सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था बीकानेर" एक "प्रकाश-स्तम्भ" ज्ञान को विलुप्त रश्मियाँ पुनः प्रतिष्ठित कर यह संस्था चिरकाल तक समाज की सेवा करती रहेगी। श्री भैरोदान जी सेठिया का जन्म बीसा ओसवाल कुल में विक्रम संवत् १९२३ विजयादशमी को बीकानेर रियासत के कस्तूरिया नामक गाँव में हुआ । आपके पिता का नाम श्री मान् सेठ धर्मचन्द जी था । आप चार भाई थे । श्री प्रतापमल जो और श्री अगर चन्द जो आप से बड़े और श्री हजारीमल जी आपसे छोटे थे । दो वर्ष की अल्पायु में ही आपके पिताजी . का स्वर्गवास हो गया। सात वर्ष की आयु में बीकानेर के बड़े उपाश्रय में साधुजी नामक यति के पास मापैकी शिक्षा का आरम्भ हुआ । दो वर्ष पढ़ कर वि. सं. १९३२ में कलकत्ते की यात्रा की ओर लौटकर बीकानेर के निकट शीवबाड़ी गाँव में रहे । सं. १९३६ में आपने बम्बई की यात्रा की। वहाँ अपने बड़े भई श्रीअगर चन्द जी के पास रहकर व्यापारिक एवं व्यावहारिक शिक्षा पाई । साथही आपने हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती भाषाएँ सीखी। सं. १९४० में बम्बई से लौटे। इसी वर्ष में आपका विवाह बीकानेर राज्य के आडसर गाँव के श्रीमान् दुलीचन्द जी नाहर की सुपुत्री रूपकुंवर के साथ हुआ । भाईयों में सम्पत्ति आदि का विभाजन होने पर आपने स्वावलम्बी जीवन में प्रवेश किया । सं. १९४१ में ओप पुनः बम्बई के लिए रखना हुए और वहाँ एक फर्म मुनीम नियुक्त हुए । इसो वर्ष आपकी मातेश्वरी गंगाबाई का वम्बई में स्वर्गवास हो गया पर आपने धैर्यपूर्वक इस कष्ट को सहन किया । बम्बई में आप सात वर्ष रहकर संवत १९४८ में कलकत्ते गये । कार्यकुशल, धर्म परायण एवं मितव्ययी पत्नी के सहयोग से आपने बम्बई में ३०००. रु. एकत्र कर लिये थे। इस पूंजी से मनिहारी और रंग की दुकान खोली और गोली सूता का कारखाना शुरू किया । अध्यवसाय, परिश्रम, नम्रता, ईमानदारी, व्यापारिकज्ञान आदि गुणों के कारण आपके व्यापारPage Navigation
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