Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 17
________________ चंद्रपण्णत्ती हस्तलिखित वृत्ति पत्र थू पत्र ५ पत्र ५ पत्र ५ पत्र ६ उबंगा १११४१ २४१३ दसाओ १०१२ १०।१४-१६ दसा. हस्त. वृत्ति वृत्ति पत्र ११ औपपातिकग्रन्थप्रसिद्धः समस्तोपि वर्णको द्रष्टव्यः स च ग्रन्थगौरवभयान्न लिख्यते केवलं तत एवोपपातिका दवसेयः औपपातिकग्रन्थोक्तो वेदितव्यः तस्य राज्ञस्तस्याश्च देव्या औपपातिक ग्रन्थोक्तो वर्णकोऽभिधातव्यः समवसरणवर्णनं च भगवत औपपातिकग्रन्थादव सेयम् "बहवे उग्गा भोगा" इत्याद्योपपातिकग्रन्थोक्तं सर्वमवसेयम् जहा दढपण्णी जहा दढपणो सू० ३२ सू० ३३ सू० ३६ सू० ४० 2 Jain Education International रावण्णओ एवं जहा ओववातिए जाव चेल्लणाए सको रेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं उक्वाइयगमेणं नेयब्वं जाव पज्जु वासइ द० ५५ ह०वृ० पत्र ११ द० ५२६ वृ० पत्र ११ द० १०।२ ह०वृ० पत्र २५ " तस्य वर्णको यथा औपपातिकनाम्नि ग्रन्थेऽभिहितस्तथा" द० १०१२ ह०वृ० पत्र २५ विस्तरव्याख्या तूपपातिकानुसारेण वाच्या द० १०१३ ह०वृ० पत्र २५ आदिकरः यावत्करणात् " मोपपातिक ग्रंथादवसे यः -- पातिकग्रन्थप्रतिपादितः समस्तोपि वर्णको वाच्यः स चेह ग्रंथगौरवभयान्न लिख्यते केवलं तत एवोपपातिकादवसेयः । दसा. ५३४ चैत्यवर्णको भणितव्यः सोप्यौपपातिकग्रन्थादवसेयः औपपातिकोक्तं पाठसिद्धं सर्वमवसेयं......... द० १०।६ ह्०वृ० पत्र २६ जावत्ति यावत्करणात जणवूहेइ वा उग्गा भोगा - इत्याद्योपपातिकग्रन्थोक्तम् — द० १०।१४.१६ ह०वृ०पत्र २८ उववातियगमेणीति औपपातिकग्रंथोक्तकौणिक वंदन गमनप्रकारेणायमपि निर्गतः ५० १० २१ ह०वृ० पत्र २६ इहावसरे धर्म्मकथा औपपातिकोक्ता भणितव्या अन्य आगमों में ओवाइयं के सूत्र : ओवाइयं भगवई 'समस्तो औपपातिक ग्रन्थप्रसिद्धो केवल २५।५५६-५६३ २५/५६४-५६८ २५।५७६-५७६ २५५८२-५६८ राय० जंबु ० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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