Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 15
________________ पत्र ५४२ 'जहा उववाइए तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणघरे"त्ति यथोपपातिकेऽट्टणसाला व्यतिकरो........ पत्र ५४५ "जहा दढपइन्ने" ति यर्थापपातिके दढप्रतिज्ञोऽधीतस्तथाऽयं वक्तव्यः तच्चवम पत्र ५४५ "एवं जहा दढपइन्नो' इत्यनेन यत्सूचितं तदेवं दृश्यम् पत्र ५४८ ''जहा उववाइए" इत्यनेनयत्सूचितम् पत्र ५४६ "जहा अम्मडो" ति यथोपपातिके अम्मडोऽधीतस्तथाऽयमिह वाच्यः पत्र ५६३ "एवं जहा उववाइए जाव आराहग" त्ति इह यावत्करणादिदमर्थतो लेशन दृश्यम्पत्र ५६३ "एवं जहे" त्यादिना यत्सूचितम् पत्र ६६६ नावं जहा उववाइए" इत्यादि भावितमेवाम्मडपरिव्राजककथानक इति । पत्र ६२४ "जहा उववाइए" ति अनेनेदं सूचितम् पत्र ६२४ 'जहा उववाइए" त्ति अनेनेदं सूचितम् पत्र ६२४ "जहा उववाइए" ति अनेनेदं सूचितम् ज्ञातावृत्ति पत्र २ वर्णकनन्थोत्रावसरे वाच्यः--- विवागसुयं १३ . जहा दढपइण्णे २।१।३६ बहा दढपइण्णे २१० जहा दढपइण्णे रायपसेणियं असोयवरपायवे पुढविसिलापट्टए क्त्तव्वया भोववाइयगमेणं नेया सू०६८८ एगदिसाए जहा उपवाइए जाव अप्पेगतिया रायपसेणिय वृत्ति सम्प्रत्यस्या नगर्या वर्णकमाह- (यहां औपपातिक का उल्लेख नहीं) पृ० ८ यावच्छन्दकरणात् "स दिए कित्तिए नाए सच्छत्ते” इत्याद्यौपपातिकग्रन्थप्रसिद्ध वर्णकपरिग्रहः अशोकवरपादपस्य पृथिवीशिलापट्टकस्य च वक्तव्यता औपपातिकग्रन्थानुसारेण ज्ञेया। पृ० २७ यावच्छब्दकरणाद्राजवर्णको देवीवर्णकः समवसरणं चौपपातिकानुसारेण ताव द्वक्तव्यं यावत्समवसरणं समाप्तम् पृ० ३० यावच्छब्दकरणात् "आइकरे तित्थगरे" इत्यादिक: समस्तोपि औपपातिकग्रन्थ प्रसिद्धो भगवतद्वर्णको वाच्यः, स चातिगरीयानिति न लिख्यते, केवलमीपपातिक ग्रन्थादवसेयः पृ० ३६ बहवे उग्गा भोगा इत्याद्यौपपातिकग्रन्थोक्तं सर्वमवसातव्यं यावत् समग्रापि राजप्रभतिका परिणत्पर्युपासीना अवतिष्ठते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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