Book Title: Agam 09 Anuttaropapatik Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ९, अंगसूत्र-९, 'अनुत्तरोपपातिकदशा'
वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक और पानी भिक्षा से लाता था तो मुझको दिखाकर बिना किसी लालसा के आहार करता था । धन्य अनगार के पादों से लेकर सारे शरीर का वर्णन पूर्ववत् जानना । उसके सब अङ्ग तप-रूप लावण्य से शोभित हो रहे थे । इसीलिए हे श्रेणिक ! मैंने कहा है कि चौदह हजार श्रमणों में धन्य अनगार महातप और महाकर्मों की निर्जरा करने वाला है । जब श्रमण भगवान महावीर के मुख से श्रेणिक राजा ने यह सूना और इस पर विचार किया तो हृदय में अत्यन्त प्रसन्न और सन्तुष्ट हुआ और इस प्रकार प्रफुल्लित होकर उसने श्रमण भगवान महावीर की तीन बार आदक्षिणा और प्रदक्षिणा की, उनकी वन्दना की और नमस्कार किया । जहाँ धन्य अनगार था वहाँ जाकर उसने धन्य अनगार की तीन बार आदक्षिणा और प्रदक्षिणा की । वन्दना और नमस्कार किया तथा कहने लगा कि तुम धन्य हो, श्रेष्ठ पुण्य वाले हो, श्रेष्ठ कार्य करने वाले हो, श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त हो और तुमने ही इस मनुष्य जीवन का श्रेष्ठ फल प्राप्त किया है । इस प्रकार स्तति कर और फिर उनको नमस्कार कर वहाँ श्रमण भगवान को तीन बार नमस्कार किया और वन्दना की। फिर जिस दिशा से आया था उसी दिशा में चला गया। सूत्र - १२
तब उस धन्य अनगार को अन्यदा किसी समय मध्यरात्रि में धर्म-जागरण करते हुए इस प्रकार के आध्यात्मिक विचार उत्पन्न हुए कि मैं इस उत्कृष्ट तप से कृश हो गया हूँ अतः प्रभात काल ही स्कन्दक के समान श्री भगवान से पूछकर स्थविरों के साथ विपुलगिरि पर चढ़कर अनशन व्रत धारण कर लूँ । तदनुसार ही श्री भगवान की आज्ञा ली और विपुलगिरि पर अनशन व्रत धारण कर लिया । इस प्रकार एक मास तक इस अनशन व्रत को पूर्ण कर और नौ मास तक दीक्षा का पालन कर वह काल के समय काल करके चन्द्र से ऊंचे यावत् नव-ग्रैवेयक विमानों के प्रस्तटों को उल्लङ्घन कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव-रूप से उत्पन्न हो गया । तब स्थविर विपुलगिरि से नीचे ऊतर आये और भगवान से कहने लगे कि हे भगवन् ! ये उस धन्य अनगार के वस्त्र-पात्र आदि उपकरण हैं।
तब भगवान गौतम ने श्री श्रमण भगवान महावीर से प्रश्न किया कि हे भगवन् ! धन्य अनगार समाधि से काल कर कहाँ उत्पन्न हुआ है ? हे गौतम ! धन्य अनगार समाधि-युक्त मृत्यु प्राप्त कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देवरूप से उत्पन्न हुआ । हे भगवन् ! धन्य देव की वहाँ कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! तैंतीस सागरोपम की। गौतम ने प्रश्न किया कि देवलोक से च्युत होकर वह वहाँ जाएगा और कहाँ पर उत्पन्न होगा? भगवान ने कहा कि वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो निर्वाण-पद प्राप्त कर सब दुःखों से विमुक्त हो जाएगा । हे जम्बू ! इस प्रकार मोक्ष को प्राप्त हुए श्री श्रमण भगवान ने तृतीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है।
वर्ग-३ अध्ययन-२ से १० सूत्र-१३
हे जम्बू ! उस काल और उस समय में काकन्दी नगरी थी । उसमें भद्रा नाम की सार्थवाहिनी थी । वह धन-धान्य-सम्पन्ना थी । उस भद्रा सार्थवाहिनी का पुत्र सुनक्षत्र था । वह सर्वाङ्ग-सम्पन्न और सुरूपा था । पाँच धाईयाँ उसके लालन पालन के लिए नीत थीं। जिस प्रकार धन्य कुमार के लिए बत्तीस दहेज आये उसी प्रकार सनक्षत्र कमार के लिए भी आये और वह सर्व-श्रेष्ठ भवनों में सुख का अनुभव करता हआ विचरण करने लगा। उसी समय श्री भगवान महावीर काकन्दी नगरी के बाहर बिराजमान हो गये । धन्यकुमार की तरह सुनक्षत्र कुमार भी धर्म कथा सुनने गए । थावच्चापुत्र की तरह प्रव्रजीत भी हए । अनगार होकर वह ईर्यासमिति के सब गुणों से युक्त पूर्ण ब्रह्मचारी हो गया । वह सुनक्षत्र अनगार जिस दिन मुण्डित हो प्रव्रजित हुआ उसी दिन से उसने अभिग्रह धारण कर लिया । यावत् जिस प्रकार सर्प बिल में प्रवेश करता है उसी प्रकार वह भोजन करने लगा । संयम और तप से अपनी आत्मा की भावना करते हुए विचरण करने लगा । इसी बीच श्री भगवान महावीर स्वामी जनपद-विहार के लिए बाहर गये और सुनक्षत्र अनगार ने एकादशाङ्ग शास्त्र का अध्ययन किया । वह संयम और तप से अपनी आत्मा की भावना करते हुए विचरण करने लगा। तदनु अत्यन्त कठोर तप के कारण स्कन्दक के समान सुनक्षत्र अनगार का शरीर भी कृश हो गया ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (अनुत्तरोपपातिकदशा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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