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ग्यारहवां शतक: प्रथम उद्देशक:
ग्यारहवां शतक : पंचम उद्देशक : उत्पल (जीव विषयक) 69-100 नालिक (जीव विषयक) 106-106 प्राथमिक
ग्यारहवां शतक : छठा उद्देशक : ग्याहरवें शतक की संग्रहणी गाथा
पद्म (जीव विषयक)
107-107 द्वार गाथाएँ १. उपपात द्वार
ग्यारहवाँ शतक : सप्तम उद्देशक : २. परिमाण द्वार
कर्णिका (जीव विषयक) 108-108 ३. अपहार द्वार ४. उच्चत्व द्वार
74 ग्यारहवाँ शतक : अष्टम उद्देशक : ५ से८ तक-ज्ञानावरणीयादि-बन्ध-वेद
नलिन (जीव विषयक)
109-110 उदय-उदीरणा द्वार ९. लेश्या द्वार
79 ग्यारहवाँ शतक : नवम उद्देशक : १० से १३ दृष्टि-ज्ञान-योग-उपयोग-द्वार 82 शिव राजर्षि
111-136 १४-१५-१६-वर्णरसादि-उच्छ्वासक- शिव राजा का दिक्प्रोक्षिक-तापसआहारक द्वार
84 प्रव्रज्याग्रहण-संकल्प १७-१८-१९-विरति-क्रिया और
शिवभद्र कुमार का राज्याभिषेक और बन्धक द्वार
राज्य-ग्रहण २०-२१-संज्ञा और कषाय द्वार 89
शिव राजर्षि द्वारा दिशाप्रोक्षकतापस-प्रव्रज्या २२ से २५-स्त्रीवेदादि-वेदक-बन्धकसंज्ञी-इन्द्रिय-द्वार
शिव राजर्षि द्वारा दिशाप्रोक्षणतापसचर्या का २६-२७-अनुबन्ध-संवेध-द्वार
पालन २८ से ३१ तक आहार-स्थिति-समुद्घात
राजर्षि को विभंगज्ञान प्राप्त होने पर अपने उद्वर्तना-द्वार
ज्ञान का दावा और जनशंका ग्यारहवाँ शतक : द्वितीय उद्देशक :
भगवान द्वारा असंख्यात द्वीपसमुद्र की प्ररूपणा शालूक (जीव विषयक) 101-102
द्वीप-समुद्रगत द्रव्यों में वर्णादि की
परस्परसम्बद्धता ग्यारहवाँ शतक : तृतीय उद्देशक :
भगवान से सत्य सुनकर जनता द्वारा प्रचार पलाश (जीव विषयक) 103-104
शिवराजर्षि द्वारा निर्ग्रन्थ प्रव्रज्या स्वीकार और ग्यारहवाँ शतक : चतुर्थ उद्देशक :
मुक्ति प्राप्ति कुम्भिक (जीव विषयक) 105-105 सिद्ध होने वाले जीवों का संहननादि 135
ग्रहण
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(14)
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