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जैन धर्म दर्शन की अनमोल धरोहर आप्त पुरुषों की वाणी
"आगम" का शाब्दिक अर्थ है पदार्थ के रहस्य का परिपूर्ण ज्ञान होना । जिन्होंने केवलज्ञान से तीनों काल के पदार्थों को व तीनों लोकों के द्रव्यों को गुण व पर्याय से जाना व देखा है, ऐसे सर्वज्ञ तीर्थंकर ही आप्त पुरुष हैं और उनसे उत्पन्न अर्थ ज्ञान 'आगम' है।
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प्रकाशकीय
ऐसा ही एक आगम है - श्री भगवती सूत्र । इस 41
शतक और 1138 उद्देशकों वाले विशाल आगम के चतुर्थ खण्ड
को पुस्तकाकार कर सचित्र रूप में आपके कर-कमलों में
सुशोभित करते हुए हमारा हृदय आध्यात्मिक उल्लास से भर
उठा है।
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आगम साहित्य जैन दर्शन की अनमोल निधि है। लगभग बीस वर्ष पूर्व इस निधि की रक्षा
के लिए पूज्य गुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्त्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. सा. ने अपने अन्तेवासी सुशिष्य प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी म. सा. को प्रेरणा प्रदान की। गुरु इच्छा को पूर्ण करने हेतु पू. प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी म. सा. ने तत्कालीन परिस्थितियों पर विचार कर इसका अंग्रेजी अनुवाद सहित सचित्र संस्करण प्रकाशित कराने का मानस बनाया। कड़े परिश्रम और चिंतन के पश्चात्
इस विचार ने मूर्त रूप धारण किया और पद्म प्रकाशन का प्रथम सोपान सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र सन् 1992 में प्रकाशित हुआ ।
आगम का इस प्रकार का सचित्र संस्करण विश्व में प्रथम बार प्रकाशित किया गया था। इसके प्रकाशन से जैन आगम साहित्य के प्रकाशन में एक नवीन विधा का शुभारम्भ हुआ। सचित्र श्री भगवती सूत्र इस श्रृंखला में 26वीं रचना है। इसका प्रथम भाग सन् 2005 में प्रकाशित किया गया । सन् 2006 में द्वितीय भाग और सन् 2008 में तृतीय भाग प्रकाशित किया गया। अब यह चतुर्थ भाग ( शतक 10 से लेकर शतक 13 के चौथे उद्देशक तक) आपके समक्ष प्रस्तुत है। आगे के भागों का प्रकाशन भी शीघ्र करने का प्रयास किया जा रहा है।
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