Book Title: Adinath Charitra Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 9
________________ श्री आदिनाथचरित्र. (३) शब्दार्थ-नक्तिना नारथी नम्र श्रयेला इंज्ञदिक देवतानना मुकुटना मगिननी पंक्तिनी कांतिये करीने सुशोजित बनेला श्री ऋषभादिक जिनवरोना चरण कमलने अमे नमस्कार करीए गए. ॥१॥ तेमां प्रथम मंगलने माटे लेशमात्र श्री युगादिदेवर्नु (श्री ऋषन्नप्रन्नु मुं) चरित्र कहेवाय ने. ॥श्री आदिनाथचरित्रम् ॥ देवतानने दर्ष पमामनार अने सर्व प्रकारला धर्म कर्मना मार्गने प्रगट करनार श्री षन्नप्रन्नुने तेमना चरित्रना बंधथी हुं कांइक वर्णन करीश. पूर्वे महाविदेह क्षेत्रने विषे कितिप्रतिष्टित नामना नगरमां कुबेरना समान धनवंत धन नामनो सार्थपति रहेतो हतो. एकदिवस कार्यने विषे निपुण एवो ते पोताना नगरथी चार प्रकारना करीआए लश्श्री वसंतपुर प्रत्ये वेपार करवा माटे जवानी तैयारी करवा लाग्यो. तेनी साथे पोताना शिष्यवर्ग सहित श्रीधर्मघोष आचार्य पण ते नगर जेवा तैयार थया.अनुक्रमे प्रयाण करता तेमने मार्गने विषे वर्षाकाल प्राप्त थवाश्री ते सार्थपतिए एक म्होटा अरगनीमध्ये पमाव करयो. त्यां काल विलंब अवाधीनाथु थै रहेवाने लीधे सौ माणसो कंद मूलनुं नकण करवा लाग्या. ते जोश्ने धन सार्थपति पोताना मनमां विचार करवा लाग्यो के, “अहो ! नाथा रहित ए मुनिन शुं करता रहेता हो? अने तेन शुं निदा लावीने नोजन करता हशे!" आम विचार करीने ते तेमनी पाले गयो अने हर्षश्री मुनिनने कदेवा लाग्यो के “हे नगवंतो ॥ पूज्य एवा तमे म्हारा सार्थने विषे आव्या गे, बता में पापीये आपनी जरा पण चिंता करी नथी, तेथी तमे नक्त पान विना दुःखी अता हशो; माटे म्हारा नपर कृपा करीने म्हारा स्थानकने विषे पधारो अने तमारे योग्य एवं जे वक्त पान होय ते ग्रहण करीने मने निस्तारो.पती तेनो अतिशुनाव जाणीवे आ- ' चरण अने अनाचरण जाणवामां कुशल एवा धर्मघोष सूरि तेना आश्नमे (तंबुप्रत्ये) आव्या. त्यां जेने सर्व शरीरे रोमांच थयो ले एवा ते सार्थपतिए सर्व प्रकारना उषया रहित तेमने बहु घी वहोराव्यु. आवा शुक्ष्नावश्री आपेला दानना प्रनावे करीने तेज जवने विषे प्राप्त अयुं बोधीबीज जेने एंवो ते साPage Navigation
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