Book Title: Adinath Ballila Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ जुलाई - २००७ चकरडी भमरडी पीलि, भमरडा चकरडी नीली, कालि वंशी वेंण वाजें धनुंषधोलि ॥१०॥ बोलतो बालुडो बोलें, माडी साथें मांडें राडि, मरकडलो देइ मागें सुखडी बहुल ||११|| सरीफल घोडां छोलि, खलह खजुर भेलि, अखोड बदाम वछ दाडिमकलि ॥ १२॥ खार्यक टोपरां- बहुं, चारोलि चारवि सहु, साकरलिगां खरमां पुत्रनें कहुं ||१३|| द्राख बें नीलि सुकी, खशखशमां खांड मुंकी, आवो रे अलवेशर वीरा रांमति मुंकी || १४॥ काकरीयां तलशांकलि, गोलनी पापडी गलि, ४१ कुलेर तिलवट आलुं गुंदस्यु तलि ॥ १५ ॥ मेंठा आंबारस घोलि, खांड केलां घृत भेलि, रायण फणस वत्स आपुं नि कोलि ॥ १६ ॥ धांणी चेंणा लिओ जिलुंआ, दुधें पच्या आलुं पुआ, पुंख नें शेलडीशांठा लिओ जिजुआ ||१७|| कमलकाकडी कुलि, चोला नें मगानि फलि, Jain Education International आंबांनि कातलि पस्तां आलुं जी छोलि ॥१८॥ सुखडी रायण सुकी, दुधमां शाकर झोकी, पंचामृत आदें शवि सुखडी मुकी ॥१९॥ भणें मरुदेवी मात, आवो वत्स कहुं वात, हसीने हइयामां लि प्रथमनाथ ||२०|| हसी रमी भमी थाका, अंघोल करोनें आता, उवारणां लिई मरुदेविअ माता ॥ २१ ॥ चुआरस भरी कचोलि, मोगरेल चांपेल भेलि, केशरकपुर रोलि, देइ माय अंघोलि ||२२|| जलवट सोनातणी, बैठा छें त्रीभोंवनधणी, कस्तुरी जबा ति बांधी उगट घणी ||२३| त्रांबाकुंडी जल भरी, नीरमल नीरगलि, हेंम डोइलें नवरावें उलट घणें ||२४|| उवारणां इंडीपिंडी, भामणां लिई मावडी, इशवन्न लुंण करें तेवतेवडी ॥२५॥ गंगोदक देवें दीघां, चरणोदक शवि लिधां, वस्त्र पेंरावि सवि कारज्य शीद्धां ||२६|| सुरयकोडिथी बहु, रूपें मोह्यां देव शहु, अंगनी स्यौभा एकें जीर्भे स्युं कहुं ॥ २७॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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