Book Title: Adinath Ballila
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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________________ जुलाई २००७ अज्ञातकर्तृक श्री आदिनाथ - बाललीला सं. विजयशीलचन्द्रसूरि प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथनी बालक्रीडाने विषय बनावीने रचायेल आ लघु कृति 'लावणी' प्रकारनी रचना होय एम जणाय छे आना प्रणेता कोण छे ते, अन्तिम कडीओमां कविनुं नामाचरण न होवाथी, नक्की करवुं अशक्य छे. आ प्रतना बीजा पत्रमां, बाललीला पूर्ण थया पछी, पृष्ठभागमा २० विहरमान जिननुं चैत्यवन्दन लखेलुं छे, तेना अक्षर पण 'बाललीला' ना अक्षर तुल्य ज होई, बधुं एक ज लेखक द्वारा लखायेलुं जणाय छे. ते चैत्यवन्दनमां तेना कर्ता तरीके 'सुधनहर्ष' नुं नाम छे. बनी शके के तेमणे ज आ प्रति लखी होय. अने तो तेमणे ज आ रचना ( बाललीलानी) करी होय एवी शक्यता पण स्वीकारी शकाय प्रत सं. १८४१मां लखाई छे, तेथी आ रचना पण १९मा शतकनी होवानुं मानीए तो कोई आपत्ति नथी जणाती. आना कर्ता पर उत्तर गुजरातनी बोलीनी गाढ असर तो छे ज (घोडां - १२, मेंठां - १६), पण थोडीक मराठीनी पण असर वर्ताय छे. दा.त. क. २१मां 'अंघोल करो ने आता', 'आता' एटले हवे, हमणां; आ शब्द स्पष्टतः मराठी छे. - ३९ प्रथम कडीमा कर्ता बालकृ (क्री) डा वर्णववानी प्रतिज्ञा करीने पछीनी कडीओमां भगवानना वस्त्र - शणगारनुं मधुर वर्णन आपे छे. ९-१० कडीओमां 'रामति' रमतनी वात छे, जेमां गेडी-दडी, चकरडी- भमरडी, वांसळी - वेणु, धनुष वगेरे द्वारा क्रीडानो संकेत आप्यो छे. क्रीडाना साथी बन्या छे देवीदेवो. रमतां रमतां वळी भूख लागे एटले मा पासे जई राड पाडी, हसी हसी ने सुखडी ( क - ११) मागे छे. एटले मा कहे छे के रमत मूकीने आवो (क. १४) तो बधुं मळे. अने पछी मा केवा केवा 'भाग' आपे छे तेनुं वर्णन क. १२ - १९मां विशद थयुं छे. Jain Education International क. २० - २१मां माता पुत्र - प्रभुने हैये (गोदमां) लई समजावे छे के मी- भमी बहु थाक्या, हवे आवो तो न्हवरावी दउं अने २२ - २६मां अंघोळ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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