Book Title: Adhyatma Barakhadi
Author(s): Daulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 9
________________ अध्यात्म बारहखड़ी || ॐ नमः परमात्मने ॥ भोक ।। वंदे ज्ञानात्मक धीरे, वीर गंभीर शासनं। भक्तिदं भुक्तिमुक्तीशं, योगिनं कर्म दूरगं॥१॥ गुरून्महामुनीनत्वा, दृष्ट्वानेकांत पद्धति। नत्वा जिताहिपोव, वक्षे नामावली प्रभो ।। २ ।। __- दोहा - वंदा आदि अनादि को, जो युगादि जगदाश। कर्म दलन खलबल हरन, तारनतरन अधीश ॥१॥ केवल ज्ञानानंदमय, परमानंद स्वभाव । गुन अनंत अतिनाम जो, शक्ति अनंत प्रभाव॥२॥ शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध जो, अति समृद्ध अवनीश। ऋद्धि सिद्धि धर वृद्धि कर, ईश्वर परम मुनीश।। ३॥ शक्ति व्यक्ति धर मुक्तिकर, सदा ज़प्तिधर संत। वीतराग सरवज्ञ जो, सो श्रीधर भगवंतः ॥ ४॥ केवलराम अनाम जो, रमि जो रह्यौ सब माहि। जैसी ठौर न देखिए, जहाँ देव वह नांहि ॥५॥ केवल रूप अनूपकौं, हर हरि गणप दिनेश। अतुत्न शक्ति मुनिवर कहै, सो विधि बुद्ध जिनेश॥६॥ वंधन हर हर नाम धर, हरी पराक्रम रूप । तमहर दिनकर देव जो, गणनायक जगभूप।।७।।

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