Book Title: Adhyatma Barakhadi
Author(s): Daulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 6
________________ परमात्मा सदा ही प्राणी के निकट हैं (१४६/९) । कवि कहते हैं कि हम में इडा, पिंगला, सुषुम्ना आदि नाड़ियों से निरन्तर सोहं-सीहं का नाद गूंज रहा है, पर विरले जन ही उसे सुन-समझ पाते हैं (४०/३३, ३४), अन्य जन उसे सुनते हुए भी अपने परमात्मस्वरूप से बेखबर हैं (९:१०६, १११ ) । जब भव्यों के घट में इस नाद की गर्जना होती है तो मोह भाग खड़ा होता है (४८/९१) । ____ कवि की परमात्मा की भक्ति में बड़ी श्रद्धा है । भक्ति भुक्ति एवं मुक्ति की माता है (५३/२२), वह गुणों की जननी होने से सुरमाता है (५६.८) । परमात्मा की भक्ति में बड़ी शक्ति है। कास, सास और अन्य रोग परमात्मा के नाम से, भक्ति से पलायन कर जाते हैं (७७:३८), सर्प घर में प्रवेश नहीं करता, क्रूर पशु आक्रमण नहीं करते, राजदण्ड से मानवे मुक्त रहता है। जिस प्रदेश में परमात्मा की भक्ति होती रहती है वहाँ अकाल नहीं पड़ता (७९/६३-६४) । परमात्मा का भक्त निर्भय होता है, ज्ञानी, वीर होता है। संसारी मिथ्यादृष्टिजन मृत्यु के आगे कातर हो जाते हैं (५९/३७), निरन्तर भयभीत रहते हैं। जो जन हिंसक होते हैं, दूसरं प्राणियों को कष्ट देते हैं, उन्हें परमात्मा की भक्ति प्राप्त नहीं हो सकती (३६:५४-५५) । मांस-भक्षण तो प्रकट निंद्य है हो, शाकाहारी भोजन में भी बासा, द्विदल मिश्रित, कांजा, बहुबीजा आदि परमात्मा के भक्त ग्रहण नहीं करते। विशेष दयालु तो हरी मात्र का त्याग कर देते हैं । कवि कहते हैं भव- रोग मिटाने हेतु जिनवाणोरूप औषध के साथ अभक्ष्य के त्यागरूप पथ्य आवश्यक है। कवि धर्म के क्षेत्र में नीच-ऊँच की मान्यता को स्वीकार नहीं करते हैं। प्रभु को तजने पर ऊँचा नीचा हो जाता है और प्रभु को भजने पर नीचा ऊँचा हो जाता हैं। प्रभु तो शूद्रों का भी नाथ है ( २:१९) । प्रभु को जो भजता है वह उसका हो जाता है (७८/५५) । कवि साधमी उसे ही मानते हैं जो परमात्मा की भक्ति में लोन है तथा जो विमुख हैं वे निधर्मी हैं (२७४/५२) । मूर्तिपूजा के सम्बन्ध में पृ. १३४.१०-११ पर कवि कहते हैं कि ज्ञानानन्दस्वरूप पुरुषाकार, निराकार, निराधार निजमूर्ति को पाने हेतु जिनेन्द्र को कृत्रिमअकृत्रिम मूर्तियों का भव्यजन दर्शन, पूजन करते हैं। lviiii

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