Book Title: Adhar Abhishek Vidhi
Author(s): Arvindsagar
Publisher: Sanjaybhai Pipewala

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ १३ श्री अठार अभिषेक विधि सहदेवी वगेरे औषधिओनुं चूर्ण करी पाणीमां नांखी कळशो भरी नीचेना श्लोक अने मंत्र बोली अभिषेक करवो. - नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः सहदेवी शतमूली, शंखपुष्पी शतावरी । कुमारी लक्ष्मणा चैव, स्नापयामि जिनेश्वरम् ।।१।। . सहदेव्यादिसदौषधि-वर्गेणोद्वर्तितस्य बिम्बस्य। संमिश्रं बिम्बोपरि, पतज्जलं हरतु दुरितानि ।।२।। ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह्रौँ हः परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्रसहदेव्यादि-सदौषधि-चूर्ण-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा। ॥इति पंचम स्नात्रम् ।।५।। __- छछू (प्रथमाष्टकवर्ग) स्नात्र - अष्टकवर्ग १ लो - १. उपलोट, २. वज, ३. लोद्र, ४. हीरवणीनां मूल, ५. देवदार, ६. जेठीमध, ७. दुर्वा, ८. ऋद्धिवृद्धि. उपलोट वगेरे आठ वस्तुओर्नु चूर्ण करी पाणीमां नांखी कळशो भरी नीचेना श्लोक अने मंत्र बोली अभिषेक करवो. - | नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः सुपवित्रमूलिंकावर्ग-मर्दिते तदुदकस्य शुभधारा । बिम्बेऽधिवाससमये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती।।१।। उपलोट-वचालोद्र-हीरवणीदेवदारवः । ज्येष्ठीमधुऋ द्धिदूर्वाभिः, स्नापयामि जिनेश्वरम् ।।२।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26