Book Title: Adattadan Virman ki Vartaman Prasangikta
Author(s): Brajnarayan Sharma
Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ की अंधी दौड़ में लग जाता है । यह दौड़ उसे शोषण करना सिखाती है । शोषण से अव्यवस्था, अशांति, क्लेश, तनाव उत्पन्न होते हैं । उपद्रव, विद्रोह, विप्लव, युद्ध तथा संघर्ष आरम्भ हो जाते हैं। समाज का ढाँचा चरमराने लग जाता है। तब उसकी पुनर्व्यवस्था हेतु दण्डनीति, अनुशासन एवं न्याय व्यवस्था जन्म लेती है । मर्यादाहीनता को मिटाने के लिए धर्म संहिता तथा दण्ड संहिताओं का निर्माण किया जाता है । समाज की महत्वपूर्ण घटक इकाई होने के कारण व्यक्ति अपने आचार-विचार तथा प्रवृत्तियों द्वारा समाज के अन्य घटकों को भी प्रभाबित करता रहता है । इसीलिए व्यक्ति की उच्छृंख लता-उद्दण्डता-स्वार्थ लोलुपता को रूपान्तरित करने के लिए महापुरुष समाज में व्रत विधान की एक ओर व्यवस्था संजोता है और दूसरी ओर भीषण यातनाओं सहित राजकीय दण्ड नीति द्वारा उस पर अंकुश भी लगाता है । यदि हर व्यक्ति नैतिक सदाचरण करे, ईमानदारी के साथ कर्तव्यपरायण हो ये तो समाज में सुख-शान्ति और समृद्धि लायी जा सकती है | अतः समाज को सुसंगठित सुसंस्कृत, एवं सबल बनाने के लिए धर्माचरण के मूलमंत्र व्रतों को अपनाना अनिवार्य है । वैदिक तथा श्रमण परं पराओं में इसीलिए अपने-अपने ढंग से व्रतों को यम अथवा शील का अनिवार्य अंग बनाया गया है। केवल छिपकर किसी की वस्तु को अथवा धन को चुराना ही अस्तेय नहीं है परन्तु किसी चोर को स्वयं या दूसरे द्वारा चोरी करने के लिये प्रेरित करना या कराना या अनुमोदन अथवा प्रशंसा करना तथा चोरी करने के लिए उपकरण प्रदान करना, चोरी के माल को बेचना या बिकवाना भी चोरी है । वर्तमान संदर्भ में अस्तेय पालन की परम आवश्यकता है। कई दिन भूख से तंग आकर कोई भूखा व्यक्ति यदि किसी हलवाई की दुकान से कुछ खाने की वस्तु चुरा लेता है तो वह इतना गुनाहगार नहीं है जितने कि निम्नलिखित श्रेणी वाले लोग । नव ३२० श्रेणियों में इनको मुख्यतया बाँटा जा सकता है । इन श्रेणियों के लोग भिन्न-भिन्न प्रकार की चोरियों में अहर्निश लगे हुए हैं। अधिकांश लोग अस्तेय रोग से ग्रस्त हैं । अपनी ही अधिकार मर्यादा में सन्तुष्ट रहने वाले ईमानदार और कर्तव्यपरायण व्यक्ति' आज अंगुली पर गिनने लायक ही होंगे । वस्तुतः चोरी करना गुलाब की सेज नहीं है वरन् यह साहस का कार्य है । प्रायः लोग चोरी करने की सोचते तो हैं पर वे मानसिक रूप से हिम्मत नहीं जुटा पाते । ऐसे लोग मौका लगते ही हाथ साफ करने में नहीं ! चूकते। अतः ये भी चोर्य कर्म के भागी हैं। मोटे तौर पर इन नव श्वेत हस्तियों के कारनामों का विवरण इस प्रकार अंकित किया जा सकता है १. अधिकारजीवी सवर्ण - संकुचित विचार- १ धारा वाले संकीर्ण हृदय सवर्ण ऊंची जाति के कहलाने वाले समृद्ध तथा असमृद्ध अपने आपको धर्म का ठेकेदार मानने वाले लोग इस श्र ेणी में समाविष्ट होंगे । ये तथाकथित ऊँची जाति वाले गरीब दीन-हीन पिछड़ी या नीची जाति के लोगों को अस्पृश्य समझने वाले लोग हैं जो उनके धार्मिक, सामाजिक, नागरिक अधिकारों को हड़पकर इठलाते हैं । ये लोग उनके जीवनोपयोगी अधिकारों का दिनरात हरण करने में तल्लीन रहते हैं । जैन परम्परा ही नहीं वरन् सभी भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों ने जीवात्मा को ऊर्ध्वगमनशील मान्य किया है । अधिकार है। यही नहीं, मानव देह पाकर अपने आत्मोन्नति करना प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध स्वरूप में प्रतिष्ठित होने का प्रयास करना मानव का परम उद्देश्य या पुरुषार्थ भी है । सर्वोदय की रट लगाने वाले ये मदान्ध सवर्ण हरिजनों और निम्न जाति के निरीह - निर्दोष दीन-हीन जनों के झोंपड़ों में आग लगाकर, उन्हें धधकती ज्वाला में अपने प्राणों की आहूति देने के लिए बाध्य कर देते हैं । इस प्रकार उनके जीवित रहने के अधिकार को हड़प कर जाते हैं और जब वे लोग त्राण पाने के लिए धर्मान्तरण कर लेते हैं तो उन पर मगरमच्छी अश्रुपात करते हैं । चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम ८. साध्वीरत्न ग्रन्थ Jain Cation International Private & Personal Use Only wwww.jairtellitery.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6