Book Title: Acharya ka Swarup evam Mahima
Author(s): Prakashchand Jain
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 3
________________ 1362 जिनवाणी || 10 जनवरी 2011 | सभी मंगलों में तीसरामंगल है। आचार्य के बिना कोई संघ नहीं रह सकता। यदि आचार्य कालधर्म को प्राप्त हो जाये तो तत्काल नये आचार्य का मनोनयन अनिवार्य है, अन्यथा साधु-साध्वियों के लिए प्रायश्चित्त का विधान है। आचार्य संघ के लिए मेढीभूत आदि होते हैं मेढी आलंवणं खंभ दिडिजाणसुउत्तमं। सूरिज होई गच्छस्स....................|| अभिधान राजेन्द्र कोण आचार्य संघ के लिए मेढीभूत- गाय को बांधने के खंभे के समान गच्छ को मर्यादा से प्रवृत्ति कराते हैं। आलम्बन रूप हैं- भव गर्त में गिरते हुए संघ को धारण करने से खंभे के समान हैं- जैसे खम्भा भवन का आधार होता है उसी प्रकार आचार्य भी संघ के आधार होते हैं। नेत्र के समान- जैसे नेत्र वस्तुओं को दिखाते हैं वैसे ही आचार्य संघ के भावी शुभाशुभ के प्रदर्शक होते हैं। यानपात्र के समान- जैसे यान तीर के पार पहुँचा देता है वैसे ही आचार्य भी गच्छ को तीर पार करवा देते हैं। आचार्य पद का सम्यक्तया निर्वहन करने वाले महापुरुष या तो उसी भव में मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं अथवा तीसरे भव का तो उल्लंघन नहीं करते। भगवतीसूत्र में उल्लिखित आचार्य की महिमा का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है। -व्यंकटेश अपार्टमेन्ट, 12- अजय कॉलोनी, जे.डी.सी. सी. बैंक के सामने, रिंग रोड़, जलगाँव-425001 (महा.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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