Book Title: Acharya ka Swarup evam Mahima Author(s): Prakashchand Jain Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 2
________________ 361 | 10 जनवरी 2011 || जिनवाणी | सव्वसत्तसीसगणाणं च हियमायरंति आयरिया। पाणपरिच्चाए वि उ पुढवीदीणं समारंभ नाऽऽयरंति, नारभति, णाणुजाणंति आयरिया। सुहुमावरद्धे वि ण कस्सइ मणसाऽवि पावमायरंति तिवा आयरिया -(महानिशीथ, अध्याय 3) ___अर्थात् अठारह हजार शीलांग से युक्त, 36 गुणों से सहित जो सिद्धान्त के अनुसार वर्तन करते हैं। अपने व दूसरे के हित का आचरण करने वाले, सभी जीव व शिष्यों के हित का आचरण करने वाले, प्राणों का परित्याग करके भी जो पृथ्वीकाय आदि का समारंभ नहीं करते, नहीं कराते, न अनुमोदन करते।सूक्ष्म अपराध होने पर भी जो किसी का मन से भी बुरा नहीं चाहते, वे आचार्य कहलाते हैं। आचार्यस्सूत्रार्थदाता, दिगाचार्योवा। आचार्यस्सूत्रार्थोभयवेत्ता लक्षणादियुक्तश्च। आवश्यकसूत्र, अध्ययन 3,गाथा 95 अर्थात् आचार्य सूत्र एवं अर्थ के दाता अथवा आचार्य सूत्र, अर्थ व उभय के जानने वाले, लक्षणों से युक्त होते हैं। सारांश- उन महापुरुषों को आचार्य कहते हैं जो स्वयं ज्ञानादि पंचाचार का पालन करते हैं, करवाते हैं। वे.36 गुणों के धारक, स्व-पर हितैषी तथा सूत्र व अर्थ के दाता होते हैं। आचार्य की महिमा 1. चतुर्विध संघ में आचार्य की महिमा अपरम्पार है। वे तीर्थंकर का प्रतिनिधित्व करते हैं, उन्हें तीर्थंकर के समान माना जाता है तित्थयरसमोसूरि संमं जो जिणमयं पयासेड़। आणं अइक्कमन्तो, सो कापुरिसो व सप्पुरिसो।। महानिशीथ के पंचम अध्ययन में भावाचार्य को तीर्थंकर के समान कहा है- जे ते भावायरिया ते तित्थयरसमा चेव दळुव्वा तेसिं सन्तिअंआणं नाइक्कमेज्जति। उनकी आज्ञा का उल्लंघन करने वाला कापुरुष है, सत्पुरुष नहीं। आयरियनमोक्कारोजीवं मोटइभवसहस्सातो। भावेण कीरमाणो, होउ पुणो बोहिलामा || आयरियनमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणंच सव्वेसिं तइयं हवइमंगलं ।। -अभिधान राजेन्द्र कोष भावपूर्वक आचार्य को किया गया नमस्कार हजारों भवों से छुटकारा दिलाता है तथा बोधि को देता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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