Book Title: Acharya Hemchandra Ek Yuga purush
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf

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Page 4
________________ आचार्य हेमचन्द्र : एक युगपुरुष 691 तो सखी रोटी और मोटा कपड़ा ही उचित है। किन्तु जिस राजा के राज्य करने वाला और अपने बलाबल का विचार कर कार्य करने वाला, 24. में प्रजा को इतना कष्टमय जीवन बिताना होता है, वह राजा अपने प्रजा- व्रत, नियम में स्थिर, ज्ञानी एवं वृद्ध जनों का पूजक, 25. अपने आश्रितों धर्म का पालक तो नहीं कहा जा सकता। ऐसा राजा नरकेसरी होने के का पालन-पोषण करने वाला, 26. दीर्घदर्शी, 27. विशेषज्ञ, 28. स्थान पर नरकेश्वरी ही होता है। एक ओर अपार स्वर्ण-राशि और दूसरी कृतज्ञ, 29. लोकप्रिय, 30. लज्जावान, 31. दयालु, 32. ओर तन ढकने का कपड़ा और खाने के लिये सूखी रोटी का अभाव, शान्तस्वभावी, 33. परोपकार करने में तत्पर, 34. कामक्रोधादि अन्तरंग यह राजा के लिये उचित नहीं है।" कहा जाता है कि हेमचन्द्र के इस शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला और 35. अपनी इन्द्रियों को वश उपदेश से प्रभावित हो राजा ने आदेश दिया कि नगर में जो भी अत्यन्त में रखने वाला व्यक्ति ही गृहस्थ धर्म के पालन करने योग्य है।"१४ गरीब लोग हैं, उनको राज्य की ओर से वस्त्र और खाद्य-सामग्री प्रदान वस्तुतः इस समग्र चर्चा में आचार्य हेमचन्द्र ने एक योग्य की जाये।१३ नागरिक के सारे कर्तव्यों और दायित्वों का संकेत कर दिया है और इस इस प्रकार हम देखते हैं कि हेमचन्द्र यद्यपि स्वयं एक मुनि प्रकार एक ऐसी जीवनशैली का निर्देश किया है जिसके आधार पर का जीवन जीते थे किन्तु लोकमंगल और लोकल्याण के लिये तथा निर्धन सामंजस्य और शान्तिपूर्ण समाज का निर्माण किया जा सकता है। इससे जनता के कष्ट दूर करने के लिये वे सदा तत्पर रहते थे और इसके लिये यह भी फलित होता है कि आचार्य हेमचन्द्र सामाजिक और पारिवारिक राजदरबार में भी अपने प्रभाव का प्रयोग करते थे। जीवन की उपेक्षा करके नहीं चलते, वरन वे उसे उतना ही महत्त्व देते हैं जितना आवश्यक है और वे यह भी मानते हैं कि धार्मिक होने के लिये समाजशास्त्री हेमचन्द्र एक अच्छा नागरिक होना आवश्यक है। स्वयं मुनि होते हुए भी हेमचन्द्र पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन की सुव्यवस्था के लिये सजग थे। वे एक ऐसे आचार्य थे जो हेमचन्द्र की साहित्य साधना१५ जनसाधारण के सामाजिक जीवन के उत्थान को भी धर्माचार्य का हेमचन्द्र ने गुजरात को और भारतीय संस्कृति को जो महत्त्वपूर्ण आवश्यक कर्त्तव्य मानते थे। उनकी दृष्टि में धार्मिक होने की आवश्यक अवदान दिया है, वह मुख्यरूप से उनकी साहित्यिक प्रतिभा के कारण शर्त यह भी थी कि व्यक्ति एक सभ्य समाज के सदस्य के रूप में जीना ही है। इन्होंने अपनी साहित्यिक प्रतिभा के बल पर ही विविध विद्याओं सीखे। एक अच्छा नागरिक होना धार्मिक जीवन में प्रवेश करने की में ग्रन्थ की रचना की। जहाँ एक ओर उन्होंने अभिधान-चिन्तामणि, आवश्यक भूमिका है। अपने ग्रन्थ 'योगशास्त्र' में उन्होंने स्पष्ट रूप से अनेकार्थसंग्रह, निघंटुकोष और देशीनाममाला जैसे शब्दकोषों की रचना यह उल्लेख किया है कि श्रावकधर्म का अनुसरण करने के पूर्व व्यक्ति की, वहीं दूसरी ओर सिद्धहेम-शब्दानुशासन, लिङ्गानुशासन, धातुपारायण एक अच्छे नागरिक का जीवन जीना सीखे। उन्होंने ऐसे 35 गुणों का जैसे व्याकरण ग्रन्थ भी रचे। कोश और व्याकरण ग्रन्थों के अतिरिक्त निर्देश किया है जिनका पालन एक अच्छे नागरिक के लिये आवश्यक हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन जैसे अलंकार ग्रन्थ और छन्दोनुशासन जैसे रूप से वांछनीय है। वे लिखते हैं कि - "1. न्यायपूर्वक धन-सम्पत्ति छन्दशास्त्र के ग्रन्थ की रचना भी की। विशेषता यह है कि इन सैद्धान्तिक को अर्जित करने वाला, 2. सामान्य शिष्टाचार का पालन करने वाला, ग्रन्थों में उन्होंने संस्कृत भाषा के साथ-साथ प्राकृत और अपभ्रंश के 3. समान कुल और शील वाली अन्य गोत्र की कन्या से विवाह करने उपेक्षित व्याकरण की भी चर्चा की। इन सिद्धान्तों के प्रायोगिक पक्ष के वाला, 4. पापभीरु, 5. प्रसिद्ध देशाचार का पालन करने वाला, 6. निन्दा लिये उन्होंने संस्कृत-प्राकृत में द्वयाश्रय जैसे महाकाव्य की रचना की है। का त्यागी, 7. ऐसे मकान में निवास करने वाला जो न तो अधिक खुला हेमचन्द्र मात्र साहित्य के ही विद्वान् नहीं थे अपित् धर्म और दर्शन के हो न अति गुप्त, 8. सदाचारी व्यक्तियों के सत्संग में रहने वाला, 9. क्षेत्र में भी उनकी गति निर्बाध थी। दर्शन के क्षेत्र में उन्होंने माता-पिता की सेवा करने वाला, 10. अशान्त तथा उपद्रव युक्त सत्संग अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका और प्रमाणमीमांसा स्थान को त्याग देने वाला, 11. निन्दनीय कार्य में प्रवृत्ति न करने वाला, जैसे प्रौढ़ ग्रन्थ रचे तो धर्म के क्षेत्र में योगशास्त्र जैसे साधनाप्रधान ग्रन्थ 12. आय के अनुसार व्यय करने वाला, 13. सामाजिक प्रतिष्ठा एवं की भी रचना की। कथा साहित्य में उनके द्वारा रचित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित समृद्धि के अनुसार वस्त्र धारण करने वाला, 14. बुद्धि के आठ गुणों का अपना विशिष्ट महत्त्व है। हेमचन्द्र ने साहित्य, काव्य, धर्म और दर्शन से युक्त, 15. सदैव धर्मोपदेश का श्रवण करने वाला, 16. अजीर्ण जिस किसी विधा को अपनाया, उसे एक पूर्णता प्रदान की। उनकी इस के समय भोजन का त्याग करने वाला, 17. भोजन के अवसर पर विपुल साहित्यसर्जना का ही परिणाम था कि उन्हें कलिकालसर्वज्ञ की स्वास्थ्यप्रद भोजन करने वाला, 18. धर्म, अर्थ और काम इन तीनों वर्गों उपाधि प्रदान की गयी। का परस्पर विरोध-रहित भाव से सेवन करने वाला, 19. यथाशक्ति साहित्य के क्षेत्र में हेमचन्द्र के अवदान को समझने के लिये अतिथि, साधु एवं दीन-दुःखियों की सेवा करने वाला, 20. मिथ्या- उनके द्वारा रचित ग्रन्थों का किंचित् मूल्यांकन करना होगा। यद्यपि हेमचन्द्र आग्रहों से सदा दूर रहने वाला, 21. गुणों का पक्षपाती, 22. निषिद्ध के पूर्व व्याकरण के क्षेत्र में पाणिनीय व्याकरण का अपना महत्त्व था, देशाचार और कालाचार का त्यागी, 23. अपने बलाबल का सम्यक् ज्ञान उस पर अनेक वृत्तियाँ और भाष्य लिखे गए, फिर भी वह विद्यार्थियों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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