Book Title: Acharya Hemchandra Ek Yuga purush
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf

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Page 1
________________ हीणायार अगीयत्थ वयणपसंगं खु णो भद्दो । - वही, २/१०१-१०२ . वही, श्रावक-धर्माधिकार, २,३ ५१. विस्तार के लिए देखें सम्बोधप्रकरण गुरुस्वरूपाधिकार । इसमें ४८. वही, २/७७-७८ ३७५ गाथाओं में सुगुरु का स्वरूप वर्णित है । ४९. बाला वंयति एवं वेसो तित्थकराण एसोवि । ५२. नो अप्पण पराया गुरुणो कइया वि हुंति सड्ढाणं । नमणिज्जो धिद्धि अहो सिरसूलं कस्स पुक्करिमों ।। जिण वयण रयणनिहिणो सव्वे ते वन्निया गुरुणो । - वही, २/७६ -वही, गुरुस्वरूपाधिकर: ३ ५०. वरं वाही वरं मच्चू वरं दारिद्दसंगमो । ५३. लोकतत्त्वनिर्णय, ३२-३३ वरं अरण्णेवासो य मा कुलीलाण संगमो । ५४. योगदृष्टिसमुच्चय, १२९ । हीणायारो वि वरं मा कुसीलएण संगमो भदं । ५५. जिनरत्नकोश, हरिदामोदर वेलंकर, भंडारकर आरिएण्टल रिसर्च जम्हा हीणो अप्प नासइ सव्वं हु सील निहिं ।। इन्स्टीच्यूट, पूना १९४४, पृ० १४४ आचार्य हेमचन्द्र : एक युगपुरुष आचार्य हेमचन्द्र भारतीय मनीषारूपी आकाश के एक में धार्मिक समन्वयशीलता के बीज अधिक विकसित हो सके। दूसरे देदीप्यमान नक्षत्र हैं। विद्योपासक श्वेताम्बर जैन आचार्यों में बहुविध और शब्दों में धर्मसमन्वय की जीवनदृष्टि तो उन्हें अपने पारिवारिक परिवेश विपुल साहित्यस्त्रष्टा के रूप में आचार्य हरिभद्र के बाद यदि कोई महत्त्वपूर्ण से ही मिली थी। नाम है तो वह आचार्य हेमचन्द्र का ही है। जिस प्रकार आचार्य हरिभद्र आचार्य देवचन्द्र जो कि आचार्य हेमचन्द्र के दीक्षागरु थे, स्वयं ने विविध भाषाओं में जैन विद्या की विविध विद्याओं पर विपुल साहित्य भी प्रभावशाली आचार्य थे। उन्होंने बालक चंगदेव (हेमचन्द्र के जन्म का का सृजन किया था, उसी प्रकार आचार्य हेमचन्द्र ने विविध विद्याओं पर नाम) की प्रतिभा को समझ लिया था, इसलिये उन्होंने उनकी माता से विपुल साहित्य का सृजन किया है। आचार्य हेमचन्द्र गुजरात की विद्वत् उन्हें बाल्यकाल में ही प्राप्त कर लिया। आचार्य हेमचन्द्र को उनकी अल्प परम्परा के प्रतिभाशाली और प्रभावशाली जैन आचार्य हैं। उनके साहित्य बाल्यावस्था में ही गुरु द्वारा दीक्षा प्रदान कर दी गई और विधिवत रूप में जो बहुविधता है वह उनके व्यक्तित्व एवं उनके ज्ञान की बहुविधता से उन्हें धर्म, दर्शन और साहित्य का अध्ययन करवाया गया। वस्तुतः की परिचायिका है। काव्य, छन्द, व्याकरण, कोश, कथा, दर्शन, हेमचन्द्र की प्रतिभा और देवचन्द्र के प्रयत्न ने बालक के व्यक्तित्व को अध्यात्म और योग-साधना आदि सभी पक्षों को आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी एक महनीयता प्रदान की। हेमचन्द्र का व्यक्तित्व भी उनके साहित्य की सृजनधर्मिता में समेट लिया है। धर्मसापेक्ष और धर्मनिरपेक्ष दोनों ही प्रकार भाँति बहु-आयामी था। वे कुशल राजनीतिज्ञ, महान् धर्मप्रभावक, लोकके साहित्य के सृजन में उनके व्यक्तित्व की समानता का अन्य कोई नहीं कल्याणकर्ता एवं अप्रतिम विद्वान् सभी कुछ थे। उनके महान् व्यक्तित्व मिलता है। जिस मोढ़वणिक जाति ने सम्प्रति युग में गाँधी जैसे महान् के सभी पक्षों को उजागर कर पाना तो यहाँ सम्भव नहीं है, फिर भी मैं व्यक्ति को जन्म दिया उसी मोढ़वणिक जाति ने आचार्य हेमचन्द्र को भी कुछ महत्त्वपूर्ण पक्षों पर प्रकाश डालने का प्रयत्न अवश्य करूँगा। जन्म दिया था। हेमचन्द्र की धार्मिक सहिष्णुता आचार्य हेमचन्द्र का जन्म गुजरात के धन्धुका नगर में श्रेष्ठि यह सत्य है कि आचार्य हेमचन्द्र की जैनधर्म के प्रति अनन्य चाचिग तथा माता पाहिणी की कुक्षि से ई० सन् १०८८ में हुआ था। निष्ठा थी किन्तु साथ ही वे अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु भी थे। उन्हें यह जो सूचनाएँ उपलब्ध हैं उनके आधार पर यह माना जाता है कि हेमचन्द्र गुण अपने परिवार से ही विरासत में मिला था। जैसा कि सामान्य विश्वास के पिता शैव और माता जैनधर्म की अनुयायी थीं। आज भी गुजरात है, हेमचन्द्र की माता जैन और पिता शैव थे। एक ही परिवार में विभिन्न की इस मोढ़वणिक जाति में वैष्णव और जैन दोनों धर्मों के अनुयायी धर्मों के अनुयायियों की उपस्थिति उस परिवार की सहिष्णुवृत्ति की ही पाए जाते हैं। अत: हेमचन्द्र के पिता चाचिग के शैवधर्मावलम्बी और परिचायक होती है। आचार्य की इस कुलगत सहिष्णुवृति को जैनधर्म के माता पाहिणी के जैनधर्मावलम्बी होने में कोई विरोध नहीं है क्योंकि अनेकान्तवाद की उदार दृष्टि से और अधिक बल मिला। यद्यपि यह सत्य प्राचीन काल से ही भारतवर्ष में ऐसे अनेक परिवार रहे हैं जिनके सदस्य है कि अन्य जैन आचार्यों के समान हेमचन्द्र ने भी 'अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका' भिन्न-भिन्न धर्मों के अनुयायी होते थे। सम्भवतः पिता के शैवधर्मावलम्बी नामक समीक्षात्मक ग्रन्थ लिखा और उसमें अन्य दर्शनों की मान्यताओं और माता के जैनधर्मावलम्बी होने के कारण ही हेमचन्द्र के जीवन की समीक्षा भी की। किन्तु इससे यह अनुमान नहीं लगाना चाहिये कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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