Book Title: Acharya Hemchandra
Author(s): V B Musalgaonkar
Publisher: Madhyapradesh Hindi Granth Academy

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Page 7
________________ प्रस्तावना भारतीय चिन्तन, साहित्य और साधना के क्षेत्र में आचार्य हेमचन्द्र का नाम अत्यन्त महत्वपूर्ण है । वे न केवल महान् गुरु, समाज-सुधारक एवं धर्माचार्य ही थे, अपितु अद्भुत प्रतिभा एवं सर्जन-क्षमता से सम्पन्न मनीषी भी थे। जहाँ एक ओर उन्होंने गुजरात के इतिहास को प्रभावित किया, जैन धर्म को एक नया मोड़ दिया एवं राज्य को प्रेरित कर समस्त गुर्जरभूमि को अहिंसामय बना दिया, वहाँ उन्होंने साहित्य, दर्शन, योग, व्याकरण, छन्द-शास्त्र, काव्य-शास्त्र, अभिधान कोश आदि वाङ्मय के सभी महत्वपूर्ण अङ्गों पर नवीन साहित्य की सृष्टि कर, इस दिशा में भी एक नये पथ को आलोकित किया । जैन आचार्यों और ग्रन्थकारों में वे मूर्धन्य हैं । संस्कृत और प्राकृत दोनों पर उनका समान अधिकार था। लोग उन्हें 'कलिकालसर्वज्ञ' के नाम से पुकारते थे । महाराज भोज के नाम से प्रख्यात सारी रचनाएं यदि उन्हीं की हों, तो निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि भोज को छोड़कर अन्य कोई भी रचनाकार इतने अधिक विषयों में ऐसे सुपुष्ट ग्रन्थों का निर्माण नहीं कर सका। और भोज का सम्पूर्ण साहित्य केवल संस्कृत में है। आचार्य हेमचन्द्र का जीवन, रचना-काल, कृतियाँ तथा उनके जीवन की प्रमुख घटनाएँ, सौभाग्यवश, विवाद का विषय नहीं है। जैन इतिहास ने उन्हें सम्हाल कर, संजोकर रखा है। उनके अनेक ग्रन्थों के सुसम्पादित संस्करण निकल चुके हैं । कई विश्वविद्यालयों में उन पर शोध कार्य हुआ है । हेमचन्द्र के "काव्यानुशासन" ने उन्हें उच्चकोटि के काव्यशास्त्रकारों की श्रेणी में प्रतिष्ठित किया है । उन्होंने यदि पूर्वाचार्यों से बहुत कुछ लिया, तो परवर्ती विचारकों को चिन्तन के लिए विपुल सामग्री भी प्रदान की । इसलिए यह आवश्यक था कि अकादमी उन्हें संस्कृत काव्याचार्यों की श्रेणी में उचित स्थान दे । प्रस्तुत ग्रन्थ

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