Book Title: Acharya Hastimalji ki Agam Sahitya ko Den
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

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Page 2
________________ • १०२ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व उनके रहस्य को खोल डाला । स्वाध्यायशील व्यक्तियों की दृष्टि को ध्यान में रखकर कुछेक आगमों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए जो कदम उठाया, उससे स्वाध्याय प्रेमी जितने अधिक लाभान्वित हुए, उससे कहीं अधिक शोधार्थियों के लिए जो शोधपूर्ण सामग्री मिली, वह अवश्य ही प्रशंसनीय कही जा सकती है। जिस संस्कृत-निष्ठ एवं क्लिष्ट सिद्धान्त के गम्भीर तत्त्वों से समन्वित टीका के लक्ष्य को ध्यान में रखकर कार्य कराया गया, वह उनकी आध्यात्मिक साधना की एक विशिष्ट उपलब्धि कही जा सकती है। आगम का सम्पूर्ण चिन्तन कुछेक शब्दों में कह पाना सम्भव नहीं, परन्तु उनके साहित्य से जो आलोक प्राप्त हुआ, उसी दृष्टि को आधार बनाकर कुछ लिख पाना या कह पाना सूर्य को दीपक दिखाने जैसी ही दृष्टि होगी। फिर भी उनका मौलिक चिन्तन यही हो सकता है : १. प्रागम की प्राध्यात्मिक साधना २. आगम की दिव्य कहानियाँ ३. आगम के धर्म-चिन्तन के स्वर ४. आगम का आचार-विचारपूर्ण दर्शन ५. आगम के उपदेशात्मक, प्रेरणात्मक प्रसंग ६. आगम के तात्त्विक क्षण ७. आगम के ऐतिहासिक तथ्य ८. आगम का इतिहास ६. ऐतिहासिक पुरुष एवं नारियाँ १०. पौराणिक पुरुष एवं नारियाँ ११. साधना की कुञ्जी। इसके अतिरिक्त कई साहित्यिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, दार्शनिक, कलात्मक एवं वैज्ञानिक तथ्य खोलकर आचार्य श्री ने हमारे सामने रख दिये जिससे हमारे आदर्श (आगम) भारत की सांस्कृतिक धार्मिक आदि की गाथा स्पष्ट हो सकी। प्राचार्य श्री की मूल भावना स्वाध्याय को बढ़ाना रहा है, इसलिए उन्होंने स्वाध्याय के बहु-पक्षी आगमों को प्रकाश में लाना ही उचित समझा होगा। आचार्य श्री के 'बृहत्कल्प-सूत्र', 'सिरि अंतगड-दसाओ' सूत्र अनुभव का अभिनव आलोक बनकर मानवीय गुणों के प्रतिष्ठान में सहायक हुए। उन्हीं के निर्देशन में शिक्षा, शिक्षक, स्वाध्याय, सामायिक, तप-त्याग, एवं सम्यक्त्व के प्रधान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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